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376 * द्रोपदी-हरण
कृष्ण का यह उत्तर सुनकर कपिल निराश होकर अपने वासस्थान को लौट आया। वहां से वह शीघ्र ही अमरकंका नगरी को गया। वहां पर पद्मनाभ से पूछताछ कि तो उसने कहा-“हे प्रभो! आपके रहते हुए भी जम्बूद्वीप के कृष्ण ने मुझे पराजित कर दिया। ऐसे अवसर पर मुझे आपकी ओर से सहायता मिलनी चाहिए थी।"
कपिल ने कहा-“हे दुरात्मन् ! तूंने देवी द्रौपदी को यहां लाकर घोर अन्याय किया था। कृष्ण असाधारण बलवान हैं। वे तेरा यह अन्याय कैसे सहन कर सकते थे? मैं भी अन्यायी का पक्ष नहीं ग्रहण कर सकता !" कपिल की यह फटकार सुनकर पद्नाभ का चेहरा उतर गया। . .
___ कपिल ने पुन: कहा-“कृष्ण ने तेरा अपराध क्षमा कर दिया है, परन्तु : मैं तुझे क्षमा नहीं कर सकता। तूंने इस कुकृत्य द्वारा राज सिंहासन को कलंकित कर दिया है, इसलिए मैं तुझे पदच्युत करता हूँ।"
इतना कह कपिल ने पद्मनाभ को सिंहासन से उतारकर उस पर उसके पुत्र को स्थापित कर दिया। अब पद्मनाभ अपनी करनी को कोसता हुआ इधर उधर भटकने लगा।
उधर कृष्ण ने पूर्ववत् समुद्र पार कर पाण्डवों से कहा-"आप लोग गंगा नदी पार कीजिए, तब तक मैं सुस्थितदेव से विदा लेकर आता हूँ।" ___ कृष्ण की यह आज्ञा पाकर पाण्डव लोग नौका द्वारा बासठ योजन लंबी चौड़ी गंगा नदी को पार कर गये। इसके बाद वे किनारे पर खड़े हो आपस में कहने लगे कि-"आज कृष्ण का बल देखना चाहिए। नौका को अब उस पार भेजने की जरूरत नहीं। हम लोग छिपकर देखेंगे, कि वे गंगानदी किस प्रकार पार करते हैं?
इस प्रकार की बातें कर पाण्डवों ने कृष्ण के लिए नौका न भेजी। तदनन्तर से वहीं छिप गये और चुपचाप देखने लगे कि कृष्ण किस प्रकार इस पार आते हैं। कुछ ही देर में सुस्थित से विदा ग्रहण कर कृष्ण गंगा नदी के तटपर आये। वहां पर उतरने के लिए किसी नौका को न देखकर उन्होंने एक हाथ से अश्वसहित रथ उठा लिया और दूसरे हाथ से वे तैरते तैरते जब वे गंगा के मध्यभाग में पहुंचे, तब उन्हें कुछ थकावट मालूम हुई। इसलिए वे अपने