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________________ श्री नेमिनाथ चरित 375 जिस समय अमरकंका नगरी में यह सब घटनाएं घटित हो रही थी, उसी समय चम्पानगरी के पूर्णभद्र नामक उद्यान में जिनेश्वर सुव्रत मुनि पधारे हुए थे, कृष्ण ने युद्ध के लिए प्रस्थान करते समय पांचजन्य शंख का जो घोष किया था, वह वहां तक सुनायी दिया था । उस समय सुव्रत मुनि की पर्षदा में बैठे हुए कपिल वासुदेव ने उस शंखध्वनि को सुनकर भगवान से पूछा – “है स्वामिन्! मेरे शंखनाद की भांति यह अत्यन्त चमत्कारी शंख नाद किसका है?” . सुव्रत मुनि ने कहा- 'यह शंखध्वनि भरतार्ध के स्वामि कृष्ण वासुदेव की है । " . - कपिल ने कहा- - "हे भगवन् ! क्या दो वासुदेव एक स्थान में एकत्र हो सकते हैं? मैं ने तो सुना है कि ऐसा कभी नहीं होता । " इस प्रश्न के उत्तर में सुव्रत मुनि ने द्रौपदी आदि का वृत्तान्त कह सुनाया । ने प्रश्न किया कि - " हे नाथ ! यहां आये हुए अपने सहधर्मी अतिथि का क्या मैं स्वागत सत्कार नहीं कर सकता ?" सुव्रत मुनि ने कहा - "यह एक साधारण नियम है कि एक स्थान में दो तीर्थंकर, दो चक्रवर्ती, दो वासुदेव, दो बलदेव या दो प्रतिवासुदेव कदापि एकत्र नहीं हो सकते। कृष्ण यहां कार्यवश आये हुए हैं। उनसे तुम्हारी भेट न " हो सकेगी। " यह जिन वचन सुनने पर भी कपिल अपनी उत्कण्ठा को न रोक सका। . वह कृष्ण से भेंट करने के लिए रथ के चिन्हों को देखता हुआ समुद्र के तट पर जा पहुंचा। उस समय कृष्णादिक के रथ समुद्र में प्रवेश कर कुछ दूर निकल गये थे। इसलिए कपिल ने स्वर्ण रौप्य के पत्र समान उनके रथ की सफेद और पीली ध्वजा देख, अपने शंख से अक्षरयुक्त ध्वनि करके कहा - " मैं कपिल वासुदेव आप से भेट करने आया हूँ, इसलिए आप वापस लौटने की कृपा कीजिए । " कृष्ण ने भी अक्षरयुक्त शंखध्वनि से इसका उत्तर देते हुए कहा – “हम लोग बहुत दूर निकल आये हैं, इसलिए अब लौटने में असमर्थ हैं।"
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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