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374 द्रोपदी - हरण
में
घुस गया
और बड़े बड़े महल ताश के पत्तों की तरह ढह पड़े । नरसिंह के भय से नगर चारों ओर हाहाकार मच गया, कोई गढ़ में छिप गया, कोई पानी में और कोई मूर्च्छित होकर भूमि पर गिर पड़ा। इसी तरह बार-बार पदाघात और गर्जना करने से ऐसा प्रतीत होने लगा, मानो शीघ्र ही पृथ्वी उलट पुलट जायगी और मनुष्यों की कौन कहे, पशु पक्षी भी जीते न बचेंगे।
राजा पद्मनाभ भी इस उत्पात से भयभीत हो उठा, और द्रौपदी के पास जाकर प्रार्थना करने लगा कि - " हे देवि ! मेरा अपराध क्षमा करो और इस यम समान कृष्ण से किसी तरह मेरे प्राण बचाओ !”
द्रौपदी ने कहा—' - "हे पद्म ! मैंने तुझे कहा था न कि मेरे पीछे कृष्ण. जैसे महारथी हैं। तुम्हारी प्राण रक्षा का केवल एक ही उपाय है । वह यह कि, : तुम मुझे आगे कर, स्त्री का वेश पहनकर कृष्ण की शरण में चलो और उनसे क्षमा प्रार्थना करो! इसके सिवाय तुम्हारी प्राण रक्षा का कोई दूसरा उपाय. नहीं ।"
मरता क्या न करता ? पद्मनाभ को प्राण रक्षा के लिए अन्त में यही करना पड़ा। उसने द्रौपदी के साथ कृष्ण की सेवा में उपस्थित हो उनके पैरों में गिरकर क्षमाप्रार्थना की। कृष्ण ने द्रौपदी से इस महिला का परिचय पूछा तो उसने कहा—“राजन्। यही आपका अपराधी राजा पद्म है। अब यह आपकी शरण में आया है, इसलिए इसे जीवन दान दीजिएं। "
पद्म का नाम सुनते ही कृष्ण को अत्यन्त क्रोध आ गया। उन्होंने पद्म से कहा - "हे नराधम ! निःसन्देह तेरा अपराध अक्षम्य है । तेरे दुःसाहस के लिए मृत्युदण्ड ही उपयुक्त हो सकता है । परन्तु तूं स्त्री का वेश पहनकर मेरी शरण में आया है और देवी द्रौपदी की इच्छा है कि तुझे जीवनदान दिया जाय, इसलिए मैं तुझे छोड़ देता हूं। जा अब फिर कभी ऐसा दुष्कृत्य न करना !
कृष्ण का यह वचन सुनकर, पद्मनाभ को बड़ा ही आनन्द हुआ। वह बार-बार कृष्ण, द्रौपदी और पाण्डवों से क्षमा प्रार्थना कर सहर्ष अपने वासस्थान को चला गया। तदनन्तर कृष्ण और पाण्डव भी द्रौपदी को साथ लेकर उसी प्रकार जलमार्ग द्वारा भरतक्षेत्र के लिए प्रस्थान कर गये ।