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श्री नेमिनाथ-चरित * 373 पाण्डवों के यह वचन सुनकर कृष्ण ने उनको युद्ध करने की अनुमति दे दी। शीघ्र ही दोनों ओर से घोर युद्ध आरम्भ हो गया। एक ओर पांचों पाण्डव थे और दूसरी ओर पद्मनाभ तथा उसकी विशाल सेना थी। पद्मनाभ ने आशातीत पराक्रम दिखाकर शीघ्र ही पाण्डवों के दांत खट्टे कर दिये। फलत: वे कृष्ण के पास आकर कहने लगे कि- “हे स्वामिन् ! यह पद्मनाभ तो सोचने से भी अधिक बलवान निकला। इसकी सेना भी वैसी ही बलवान है, इसलिए युद्ध में इसे पराजित करना हमारे लिए बहुत ही कठिन है। किन्तु हमारी धारणा है कि आप इसे अनायास पराजित कर सकते हैं, इसलिए अब आपकी जो इच्छा हो, वह कीजिए।". ___ पाण्डवों की यह बातें सुनकर कृष्ण हँस पड़े। वे कहने लगे—हम लोग तो उसी समय पराजित हो गये थे, जिस समय आप लोगों ने यह कहा था कि पद्म राजा है या हम? तुम्हारे मन में सन्देह था, इसलिए तुम्हें पराजित होना पड़ा। मैं तो यही कहकर युद्ध करूंगा, कि राजा मैं ही हूं, पद्म नहीं। ... इसके बाद कृष्ण ने पद्मनाभ से युद्ध करने के लिए प्रस्थान किया। उसके सामने पहँचते ही उन्होंने सर्वप्रथम मेघगर्जन की भांति अपने पांचजन्य शंख का घोष किया। जिस प्रकार सिंहनाद सुनकर मृगादिक भाग खड़े होते हैं, उसी प्रकार उस शंख की भयानक ध्वनि सुनकर पद्म की सेना का तीसरा भाग रणभुमि से पलायन कर गया। इसके बाद कृष्ण ने अपने शारंग धनुष का टंकार किया, जिसे सुनकर फिर पद्म की उतनी ही सेना रण से भाग गयी। शेष जो सैनिक वहां रह गये, वे भी इतने डर गये, कि उनमें लड़ने का साहस ही न रह गया। अपने सैनिकों की यह अवस्था देखकर पद्म की भी हिंमत टूट गयी और वह भी भागकर अपनी नगरी में जा छिपा। __ नगर में छिप जाने के बाद पद्मनाभ ने अन्दर से किले के दरवाजे मजबूती के साथ बन्द करवा दिये। यह देखकर कृष्ण को बड़ा ही क्रोध आ आया। उसी समय उन्होंने रथ से उतरकर वैक्रिय समुद्रघात से नरसिंह रूप धारण किया। इसके बाद यम की तरह मुख फैलाकर घोर गर्जना करते हुए उन्होंने इतने जोर से भूमि पर पदाघात किया, कि शत्रुओं के हृदय के साथसाथ पृथ्वी भी हिल उठी, किले के कंगूरे गिर पड़े, देवालय धराशायी हो गये