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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 371 ही काम मालूम होता है। इसलिए उन्होंने पाण्डवों को बुलाकर कहा—“हे बान्धव! द्रौपदी को पद्मनाभ हर ले गया है, परन्तु आप लोग जरा भी चिन्ता 'न करें। हम लोग शीघ्र ही उसे यहां ले आयेंगे।" इसके बाद पाण्डवों सहित एक विशाल सेना को लेकर कृष्ण मगध नामक पूर्व समुद्र के तट पर गये। वहां पर समुद्र को, देखकर पाण्डवों ने कहा-“हे प्रभो! यह समुद्र भी संसार की भांति महाभीषण और अगाध मालूम होता है। यह इतना गहरा है, कि इसमें बड़े बड़े पर्वत भी डब सकते हैं। कच्छ, मच्छ आदि इसमें कितने जलचर है, इसका कोई ठिकाना नहीं। ऐसी अवस्था में हम लोग इसे कैसें पार करेंगे?" कृष्ण ने कहा- “आप लोग चिन्ता न कीजिए। हम लोग यहां तक आ पहुँचे हैं, तो अंब समुद्र पार करने का भी कोई न कोई उपाय निकल ही आयगा।" इतना कह कृष्ण ने समुद्र के तट पर बैठ, निर्मल चित्त से अट्टम तप द्वारा सुस्थित देव की आराधना की। इस पर सुस्थित ने तुरन्त प्रकट होकर कृष्ण से कहा-“हे केशव! मैं इस समुद्र का अधिष्ठायक देवता हूँ। आपकी आराधना से आकर्षित होकर मैं यहां आया हूँ। मेरे योग्य जो कार्य हो, वह मुझे शीघ्र सूचित कीजिए!" .. कृष्ण ने कहा-“अधम पद्मनाभ द्रौपदी को हरण कर ले गया है। • इसलिए आप कोई ऐसा उपाय कीजिए, जिससे धातकीखण्ड से उसे शीघ्रातिशीघ्र लाया जा सके।" - देव ने कहा—“आप कहें तो जिस प्रकार पद्मनाभ का परिचित देव उसको यहां से हरण कर ले गया है, उसी प्रकार मैं भी वहां से उसे आपके पास ला दूं या आप कहें तो सैन्य और वाहन सहित पद्मनाभ को समुद्र में डालकर द्रौपदी को आपके पास ले लाऊं।" - कृष्ण ने कहा-“हे देव! आप ऐसा न कर मेरे और पाण्डवों के छ: रथों को निर्विघ्न रूप से समुद्र पार करने का मार्ग दीजिए, जिससे हम लोग स्वयं उसको जीतकर द्रौपदी को ले आये। यही मार्ग हमारे लिये उत्तम है।"
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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