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370 * द्रोपदी-हरण मन में विचारने लगी कि सतीत्व रक्षा के लिए अब किसी युक्ति से काम लेने के सिवाय और कोई उपाय नहीं है यह सोचकर वह पद्मनाभ से कहने लगी कि-"यदि छह मास में मेरा कोई रिश्तेदार यहां न आयगा, तो मैं तुम्हारा प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लूंगी।"
___ पद्मनाभ की प्रकृति बहुत ही नीच थी। वह द्रौपदी की यह बात कदापि न मानता, परन्तु उसने सोचा कि जम्बुद्वीप के आदमियों का यहां आना असम्भव है, इसलिए द्रौपदी की बात मान लेने में कोई हर्ज नहीं। उधर द्रौपदी. ने मन ही मन प्रतिज्ञा की कि समय बीत जाने पर भी यदि मेरे पति नहीं आयेगे' तो मैं अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगी।
इधर द्रौपदी को महल में न देखकर पाण्डवों को बड़ी चिन्ता हो पड़ी और वे चारों ओर उसकी खोज करने लगा उन्होंने दूर दूर तक के जल, स्थल, वन, पर्वत और गुफा आदि स्थान छान डाले, परन्तु कहीं भी उसका पता न चलाा अन्त में उसकी माता कुन्ती ने कृष्ण के पास आकर उनसे यह हाल कह सुनाया इस पर कृष्ण ने हँसकर कहा—“अहो ! तुम्हारे पुत्र कैसे बलवान है, कि वे अपनी एक स्त्री की भी रक्षा नहीं कर सकते! खैर, अब आप चिन्ता छोड़ दीजिए और अपने घर जाइए, मैं शीघ्र ही द्रौपदी को खोजकर आपके पास पहुँचा दूंगा।"
कृष्ण के यह वचन सुनकर कुन्ती अपने घर लौट आयी। उनके चले जाने पर कृष्ण किंकर्तव्यविमूढ़ हो बैठे हुए थे, इतने ही में अपने लगाये हुए अनर्थ रूपी वृक्ष का फल देखने के लिए नारदमुनि वहां आ पहुँचे। कृष्ण ने उनका सत्कार कर पूछा- “हे मुनिराज। आजकल द्रौपदी का पता नहीं है। क्या आपने उसे कहीं देखा है ?"
नारदमुनि ने हँसकर कहा-“मैं हाल ही मैं धातकी खंड की अमरकंका नामक नगरी में गया था। वहां पर राजा पद्मनाभ के महल में द्रौपदी के समान एक स्त्री मुझे दिखायी दी थी। इसके सिवाय इस सम्बन्ध में मैं और कुछ नहीं जानता।"
इतना कह नारदमुनि तो अन्तर्धान हो गये । किन्तु उनकी भाव भंगिमा देखकर कृष्ण अपने मन में कहने लगे कि हो न हो, यह कलह प्रेमी नारद का