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श्री नेमिनाथ-चरित * 369 हस्तिनापुर नामक एक नगर है। वहां के पञ्च पाण्डवों की पटरानी द्रौपदी इतनी सुन्दर है, कि उसके सामने तुम्हारी यह सब रानियां दासी तुल्य प्रतीत होती
___ इतना कह नारद तो अन्तर्धान हो गये, परन्तु पद्मनाभ के हृदय में इतने ही से उथलपुथल मच गयी। वह द्रौपदी को अपने अन्त:पुर में लाने के लिए अत्यन्त उत्सुक हो उठा। परन्तु द्रौपदी को लाना कोई सहज काम न था। इसलिए वह अपने पूर्वपरिचित एक पातालवासी देव की आराधना करने लगा।
आराधना से प्रसन्न हो, उस देव ने प्रकट होकर पूछा:-“हे पद्मनाभ! तुमने मुझे किसलिए याद किया है?"
पद्मनाभ ने कहा—“नारद मुनि ने जब से द्रौपदी के रूप की प्रशंसा की है तभी से मैं उस पर अनुरक्त हो रहा हूँ| अतएव आप मुझ पर दयाकर, जैसा भी हो, उसे मेरे पास ला दीजिए।"
देव ने कहा- "द्रौपदी की गणना महासतियों में की जाती है। वह पाण्डवों के सिवा स्वप्न में भी अन्य पुरुष की इच्छा नहीं कर सकती। उसे बुलाना तुम्हारे हित में नहीं है। पद्मनाभ ने अति आग्रह किया तब देव ने कहा मैं उसे तुम्हारे पास लिये आता हूँ। परंतु यह अकार्य तुम मेरे द्वारा करवा रहे हो . अब भविष्य में मुझे याद मत करना। ... इतना कह, वह देव हस्तिनापुर में गया और द्रौपदी को अवस्वापिनी निद्रा में डालकर, उसे वहां से पद्मनाभ के पास उठा लाया। सुबह जब द्रौपदी की निद्रा भंग हुई, तब वह अपने को एक अपरिचित स्थान में पाकर कहने लगी—“अहो! मैं कहां हूँ? यह तो मेरा वह महल नहीं है, जहां रात को मैं सोयी थी। यह स्वप्न है या इन्द्रजाल ?" .पद्मनाभ द्रौपदी के पास ही था। उसकी व्याकुलता देखकर वह कहने लगा—“हे सुन्दरि ! तुम्हें भयभीत होने की कोई जरूरत नहीं है। मैंने ही तुम्हें यहां उठवा मँगाया है। तुम मेरे अन्त:पुर में रहकर इच्छानुसार सुख भोग सकती हो। यह धातकीखंड की अमरकंका नगरी है। मैं यहां का राजा हूँ। मैं तुम्हें अपनी पटरानी बनाकर अपने पास रखना चाहता हूँ।"
पद्मनाभ के यह वचन सुनकर द्रौपदी चिन्ता में पड़ गयी। वह अपने