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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 367 पद पर यथाविधि स्थापित किया। इसके बाद उन्होंने उनको उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यरूप त्रिपदी प्रदान की और त्रिपदी के अनुसार उन्होंने द्वादशाङ्गी की रचना की। इसके बाद अनेक कन्याओं के साथ यक्षिणी राजकन्या ने दीक्षा ली। उसे स्वामी ने प्रवर्तिनी के पद पर स्थापित किया। दस दशार्ह, बलराम, कृष्ण, राजा उग्रसेन, प्रद्युम्न तथा शाम्ब आदि ने श्रावक धर्म स्वीकार किया। शिवादेवी, रोहिणी, देवकी, रुक्मिणी आदि रानियों तथा अन्यान्य स्त्रियों ने भी श्राविका धर्म स्वीकार किया। इस प्रकार समवसरण में प्रभु का चतुर्विध संघ हुआ। दूसरे दिन सुबह प्रथम पोरुषी में प्रभु ने उपदेश दिया और द्वितीय पोरुषी में वरदत्त गणधर ने धर्मोपदेश दिया। इसके बाद शक्रादि देवता तथा कृष्णादिक राजा भगवान को प्रणाम कर अपने अपने वासस्थान को चले गये। ___ तदनन्तर उसी तीर्थ में गोमेध नामक भगवान का एक शासनदेव उत्पन्न हुआ और अम्बिका नामक एक शासनदेवी उत्पन्न हुई। गोमेध के तीन मुख, वर्ण श्याम, पुरुष वाहन, दाहिनी ओर के तीन हाथों में बीजपूर (बीजौरा) परशु और चक्र नामक तीन आयुध तथा बायीं ओर के तीन हाथों में नकुल, त्रिशुल और शक्ति नामक आयुध थे। अम्बिका की कान्ति सुवर्ण समान, सिंहवाहन, दाहिनी ओर के दो हाथों में आम्र का गुच्छ, और पाश तथा बायीं ओर के दोनों हाथों में नरमुण्ड और अंकुश शोभित हो रहे थे। अम्बिका का दूसरा नामक कुष्माण्डी भी था। ... इस प्रकार देव देवी से अधिष्ठित नेमिनाथ भगवान ने शेष चतुर्मास का समय (वर्षाकाल) उपवन में व्यतीत किया। इसके बाद वे अन्य देश की ओर 'विहार कर गये।
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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