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________________ 364 * नेमिनाथ भगवान की बल-परीक्षा उधर व्रत के दिन से आरम्भ कर चौपन दिन तक विहार कर नेमि भगवान पुन: रैवत गिरि के सहस्राम्र वन में आ पहुँचे। वहां वेतसवृक्ष के नीचे अट्ठम तप और ध्यान कर नेमि भगवान ने चार घातिकर्म का क्षय किया। उनके क्षय होने पर आश्विन मास की आमवस्या के दिन चित्रा नक्षत्र के साथ चन्द्र का योग होने पर भगवान को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। फलत: सुरेन्द्रों के आसन चलायमान हुए और वे तुरन्त भगवान की सेवा में आकर उपस्थित हुए। उसी समय उन्होंने तीन गढ़ों से युक्त समवसरण की रचना की। समवसरण बन जाने पर नेमिनाथ भगवान ने पूर्वद्वार से उसमें प्रवेश कर, वहां अवस्थित एक सौ बीस धनुष ऊंचे चैत्य वृक्ष की प्रदक्षिणा कर . 'तीर्थाय नमः' कहते हुए पूर्व सिंहासन पर पूर्वाभिमुख अवस्था में स्थान ग्रहण . किया। शेष तीन दिशाओं के सिंहासनों पर देवताओं ने नेमिनाथ के तीन प्रतिरूप उत्पन्न कर उन्हें स्थापित कर दिया, जिससे ऐसा मालूम होने लगा, मानो चार दिशा के चारों सिंहासन पर प्रभु चार रूप धारण कर विराजमान हो गये हैं। ___इसके बाद चारों प्रकार के देव देवियों ने स्वामी के मुख चन्द्र पर चकोर की भांति अपनी दृष्टि स्थापित कर यथास्थान आसन ग्रहण किया। इसी समय भगवान के समवसरण का हाल उद्यान रक्षकों ने कृष्ण को कह सुनाया। सुनकर कृष्ण को इतना आनन्द हुआ, कि उन्होंने संवाद लाने वाले को साढ़े बारह क्रोड़ रुपये इनाम दिये। इसके बाद वे हाथी पर सवार हो नेमिनाथ भगवान को वन्दना करने के लिए उस उद्यान की ओर चलने लगे। चलते समय दस दशार्ह, एक क्रोड़ राजकुमार, समस्त अन्त: पुर की रानियें और सोलह हजार राजा भी उनके साथ हो गये। ___ क्रमश: वे सब लोग समवरसण के पास जा पहुँचे। वहां पर समस्त राज चिह्नों का त्यागकर कृष्ण ने उत्तर द्वार से समवसरण के प्रकार में प्रवेश किया और तीन बार प्रभु को प्रदक्षिण तथा वन्दन कर सौधर्मेन्द्र के पीछे स्थान ग्रहण किया। उनके समस्त संगी भी इसी प्रकार प्रदक्षिणा और वन्दन कर यथोचित स्थान में बैठ गये। इसके बाद इन्द्र और कृष्ण पुन: प्रभु को वन्दन कर भक्तिपूर्वक स्तुति करने लगे। वे कहने लगे-“हे जगन्नाथ! समस्त जगत के
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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