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________________ 356 * नेमिनाथ भगवान की बल-परीक्षा विवाह के बाद कुछ मेहमानों के आतिथ्य के लिए इनका वध किया जायगा। इनमें भेड़, बकरी आदि अनेक पशु, तथा तीतर आदि अनेक पक्षी हैं। वही सब व्याकुल हो चिल्ला रहे हैं।" सारथी की यह बातें सुनकर दयावीर नेमिकुमार ने कहा- “हे सारथी! तुम मेरे रथ को पहले उस स्थान में ले चलो, जहां यह सब पशु पक्षी रक्खे गये हैं। मैं जरा उन्हें देखना चाहता हूँ।" ____ सारथी ने नेमिकुमार की यह आज्ञा तत्काल शिरोधार्य की नेमिकुमार ने.' वहां जाकर देखा तो उन्हें अनेक पक्षु पक्षी चिल्लाते हुए दिखायी दिये। उनमें से कुछ की गर्दने बँधी हुई थी, कुछ के पैर बँधे हुए थे, कुछ पीजड़ों में बन्द थे,और कुछ जाल में जकड़े हुए थे। नेमिकुमार को देखते ही वे सब कांपते हुए नेत्रों से दीनता प्रकट करते हए, मुख उठा-उठाकर अपनी अपनी भाषा में 'त्राहिमम्!" कहने लगे। नेमिकुमार से यह हृदय विदारक दृश्य अधिक समय . तक देखा न गया। इसलिए उन्होंने उसी समय सारथी को आज्ञा देकर उन सबों को बन्धन मुक्त करवा दिया। बन्धन मुक्त होते ही वे सब नेमिकुमार को आशीर्वाद देते हुए अपने अपने स्थान को चले गये। इधर नेमिकुमार ने सारथी को आज्ञा दी, कि अब अपना रथ वापस लौटा लो! तदनुसार सारथी ने ज्योंही रथ को घुमाया, त्योंही चारों ओर घोर हाहाकार मच गया। राजा समुद्रविजय, बलराम, कृष्ण शिवादेवी, रोहिणी, देवकी तथा अन्यान्य स्वजन भी अपने अपने वाहन से उतरकर उनके पास दौड़े। राजा समुद्रविजय तथा शिवादेवी ने आँसू बहाते हुए पूछा- "हे पुत्र! अचानक इस तरह तुम वापस क्यों जा रहे हो? आज विवाह की अन्तिम घड़ी है, ऐसे समय रंग में भंग क्यों कर रहे हो?" . नेमिकुमार ने गंभीरता पूर्वक कहा—“पिताजी ! मुझे आप लोग क्षमा करिए, मैं ब्याह नहीं करना चाहता। यह सब प्राणी अब तक जिस प्रकार बन्धन से बँधे हुए थे, उसी प्रकार हम लोग भी कर्म बन्धन से बँधे हुए है। जिस प्रकार ये अब बन्धन मुक्त हुए हैं, उसी प्रकार मैं भी अपनी आत्मा को ' कर्म बन्धन से रहित करने के लिए समस्त सुखों की कारण रूप दीक्षा ग्रहण करूंगा।"
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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