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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 355 कुछ ही देर में साक्षात् कामदेव की भांति हृदय में मदन को जाग्रत करने वाले नेमिकुमार राजीमती को दूर से आते हुए दिखायी दिये। उनको देखकर वह अपने मन में कहने लगी-“अहो! यह तो तीनों लोक के भूषण रूप हैं। इनको वर रूप में पाकर मेरा जीवन सफल हो जायगा। परन्तु क्या सचमुच इनसे मेरा विवाह होने जा रहा है? हां, इसमें क्या सन्देह ? विवाह के लिए तो वे आ ही रहे हैं, परन्तु न जाने क्या मुझे इस बात पर विश्वास ही नहीं होता। मैंने ऐसा कौन सा पुण्य किया है, जिससे ये मुझे पति रूप में प्राप्त होंगे? मेरा ऐसा भाग्य कहां कि यह दुर्लभ रत्न मुझे प्राप्त हो?" __राजीमती यह बातें सोच रही थीं, कि इतने ही में उसकी दाहिनी आंख और दाहिनी भुजा फड़क उठी। इससे राजीमती बड़ी चिन्ता में पड़ गयी और उसके दोनों नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगी। उसने सब हाल अपनी सखियों से कह सुनाया। इस पर सखियों ने सान्तना देते हुए कहा- "हे सखी! तुम व्यर्थ ही इस समय अमंगल की चिन्ता कर व्याकुल हो रही हो। नेत्र फुरण आदि तो शरीर के स्वाभाविक धर्म हैं। तुम्हें इनका ख्याल न करना चाहिए। कुलदेवियों का स्मरण करो वे सब अमंगल दूर कर तुम्हारा कल्याण करेंगी। • देखो, तुम्हारे पतिदेव द्वार पर खड़े हैं, मंगल गान हो रहे हैं, बाजे बज रहे हैं, और चारों ओर धूम मची हुई है, ऐसे समय आंख में यह आंसू कैसे ? अमंगल की यह चिन्ता कैसी? इस समय ऐसी नादानी तुम्हें शोभा नहीं दैती।" राजीमती ने सखियों की इन बातों का कोई उत्तर न दिया। उसने अपने आंसू पोंछ डाले और अपना हृदय कठोर बना लिया, फिर भी न जाने क्यों, किसी अज्ञात शंका के कारण, बीच बीच में उसका हृदय कांप उठता था, जिससे उसकी व्यग्रता और भी बढ़ जाती थी। नेमिकुमार धीरे धीरे जब उग्रसेन के द्वार के निकट आ पहुँचे, तब उन्हें कई पशुओं का करुण स्वर सुनायी दिया। उन्हें सुनकर नेमिकुमार सारा मामला समझ गये, फिर भी उन्होंने सारथी से पूछा-"नाना प्रकार के प्राणियों का यह करुण स्वर कहाँ से सुनायी दे रहा है।" सारथी ने कहा-“हे भगवन् ! क्या आप नहीं जानते कि आपके
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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