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354 * नेमिनाथ भगवान की बल-परीक्षा कृष्ण और बलराम ने प्रेम पूर्वक उनको स्नान कराया। तत् पश्चात रक्षा बन्धन कर, हाथ में बाण धारण कराकर कृष्ण उग्रसेन के घर गये। वहां पूर्णिमा के चन्द्र समान मुखवाली राजीमती को भी कृष्ण ने उसी विधि से बैठाया। इसके बार वे अपने वासस्थान को लौट आये। ___ तदनन्तर नेमिकुमार गहने कपड़ों से सुसज्जित हो एक सुन्दर रथ पर सवार हो, अपने महल से चलने लगे। उनके आगे-आगे करोड़ों यादव . अश्वारूढ़ हो चलते थे। दोनों ओर हाथियों पर बैठे हुए हजारों राजा, पीछे दस : दशाह तथा बलराम और कृष्ण चलते थे। उनके पीछे सुन्दर पालकियों पर बैठकर अन्त:पुर तथा नगर की रमणियां सुन्दर गीत गाती हुई जा रही थी। .
रास्ते में दोनों ओर मकान की छतों पर नगर ललानाएं बैठी हुई मंगल गान गा रही थी। ज्योंही नेमिकुमार उधर से निकलते त्योंही उनकी दृष्टियां उन पर गड़ जाती थी औरवे मंगलाक्षत तथा पुष्पवृष्टि कर अपनी शुभ कामना व्यक्त करती थी। इसी तरह नगर निवासी तथा स्वजनों को.आनन्दित करते हुए नेमिकुमार उग्रसेन के महल के समीप जा पहुँचे। ,
इधर नेमिकुमार के आगमन की तुमुल ध्वनि से कमल लोचना राजीमती उसी प्रकार आनन्दित हो उठी, जिस प्रकार मेघ गर्जन से मयुर आनन्दित हो उठता है। उसका हृदय उनको देखने के लिए छटपटाने लगा। चतुर सखियों ने उसका यह मनोभाव जानकर कहा-“हे सुन्दरि ! नेमिकुमार तुम्हारा पाणिग्रहण करने वाले है। इसलिए तुम धन्य हो! हे कमललोचने! यद्यपि नेमिकुमार यहीं आ रहे हैं, तथापि हम लोग उत्सुकता के कारण गवाक्ष में बैठकर उनको देखना चाहती हैं। तुम्हारी इच्छा हो तो तुम भी गवाक्ष में बैठकर देख सकती
राजीमती तो पहले ही से इसके लिए व्याकुल हो रही थी। सखियों के आग्रह करने पर वह तुरन्त उनके साथ एक गवाक्ष में जाकर बैठ गयी। सुन्दर और सुशोभित वस्त्रालङ्कारों के कारण उस समय उसकी शारीरिक शोभा देखते ही बनती थी। शिर पर उसने मालती पुष्पों के साथ धम्मिल (पुष्प गुच्छ) धारण किया था, जो मेघों के बीच से चन्द्र की भांति शोभा देता था। इस प्रकार यह साक्षात् देवाङ्गना के समान सुन्दर प्रतीत होती थी। .