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________________ श्री नेमिनाथ - चरित 353 उग्रसेन के इन वचनों से कृष्ण को बड़ा ही आनन्द हुआ। वे वहां से उठकर राजा समुद्रविजय के पास आये । राजा समुद्रविजय को भी कृष्ण के मुख से यह सब समाचार सुनकर परम प्रसन्नता हुई। उन्होंने प्रेम पूर्वक कृष्ण से कहा - " हे वत्स ! गुरुजनों के प्रति तुम्हारा जो भक्तिभाव और भ्राताओं के प्रति जो गाढ़ वात्सल्य है, वह वास्तव में सराहनीय है। तुम्हारे इस गुण के कारण ही तुम्हें नेमि की मनोवृत्ति बदलने में सफलता प्राप्त हुई है। वर्ना मैं तो इस ओर से सर्वथा निराश हो गया था, क्योंकि बार-बार समझाने पर भी कुमार ने मेरी बात पर कभी ध्यान न दिया था। " बाद क्रोष्टुक ज्योतिषी को बुलाकर राजा समुद्रविजय ने नेमिकुमार और राजीमती के विवाह का मुहूर्त पूछा। इस पर क्रोष्टुकि ने कहा-' - "हे राजन् ! वर्षाकाल में मामूली उत्सव भी नहीं किया जाता है, तो फिर विवाह जैत्र्य प्रश्न करना ही बेकार है । " समुद्रविजय ने कहा – “महाराज ! आपका कहना यथार्थ है, परन्तु हम लोग इस कार्य में जरा भी विलम्ब करना नहीं चाहते । कृष्ण ने न जाने कितनी मुश्किल से अरिष्टनेमि को विवाह के लिये तैयार किया है । विलम्ब करने से शायद उसकी मनोवृत्ति फिर बदल जाय और वहा इन्कार कर दे । इसलिए आप ऐसा मुहूर्त्त बतलाइये, जो बहुत ही नजदीक का हो। क्रोकिने सोच विचार कर कहा - "हे राजन् ! यदि ऐसी ही बात है, तो श्रावण शुक्ला षष्टी का दिन इस कार्य के लिए बहुत ही उत्तम होगा ।" राजा समुद्रविजय ने ब्याह के लिए यही दिन निर्धारित कर, क्रोष्टुक को सत्कार पूर्वक विदा कर दिया। इसके बाद उन्होंने उग्रसेन को भी इस मुहूर्त की सूचना दे दी । शीघ्र ही दोनों ओर से जोरों के साथ विवाह की तैयारियां होने लगी। कृष्ण ने इस अवसर पर सुन्दर मञ्च और तोरणादिक बनावा कर नगर को विशेष रूप से सजा दिया | धीरे धीरे जब विवाह का दिन नजदीक आ गया, तब दसो दशार्ह, बलराम, कृष्ण शिवादेवी, रोहिणी और देवकी आदि माता, रेवती आदि बलराम की पत्नियाँ, सत्यभामा आदि कृष्ण की रानियां तथा धात्रियों ने मिलकर नेमिनाथ को पूर्वाभिमुख एक बड़े आसन पर बैठाया। इसके बाद
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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