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श्री नेमिनाथ-चरित * 349 लोगों को कहीं भी शान्ति न मिलती थी इसलिए सब लोग शीतल और सुगन्धित जल से वारंवार अपने शरीर को सिञ्चित करने लगे और कामिनियां भी मुक्ता हार की भांति अपने हृदय पर कमल नालों को धारण करने लगी। ग्रीष्म का यह भीषण उत्पात देखकर कृष्ण, नेमिकुमार को तथा अपने अन्त:पुर को साथ लेकर रैवताचल के सरोवर पर चले गये और वहां पर जल क्रीड़ा द्वारा शारीरिक और मानसिक शक्ति उपलब्ध करने लगे।
एक दिन जल क्रीड़ा करने के लिए कृष्ण ने नेमिकुमार तथा अपनी पत्नियों को साथ लेकर हंस की भांति जलाशय में प्रवेश किया, इतने ही में कृष्ण ने किसी कामिनी की और एक अंजलि जल फेंक दिया, जिसके उत्तर में उसने भी जल उछाल-उछालकर कृष्ण को तर कर दिया। इसके बाद भांति भांति से वे सब लोग जल क्रीड़ा करने लगे। पानी से डरकर सुन्दर ललनाएं जब कृष्ण के बदन से जांकर चिपट जाती, तब कृष्ण पुत्तलिका युक्त स्तम्भ के समान प्रतीत होने लगते थे। कभी कभी कल्लोल की भांति उछालकर वह मृगाक्षियां वेगपूर्वक कृष्ण की कमर या छाती से भिड़ जाती थी। स्नान करते करते कृष्ण और वनिताओं के नेत्र लाल हो जाते थे, जिससे ऐसा प्रतीत होता • था मानो क्रोध के ही कारण उनकी यह अवस्था हुई हो। इसी तरह सपत्नी के
नाम से बुलाने पर कोई सुन्दरी कृष्ण को हरे कमल से मारने लगती, कभी - कृष्ण किसी दूसरी सुन्दरी की ओर देखते तो सत्यभामां आदि पटरानियां
अंसन्तुष्ट हो जाती और कृष्ण को पराग मिश्रित जल से मारने लगती, कभी कभी वह सब सुन्दरियां कृष्ण के चारों ओर इस प्रकार भ्रमण करती कि उनको ..देखकर गोपियों की रास लीला का स्मरण हो आता था। . कृष्ण की पत्नियां नेमिकुमार से भी हास्यविनोद और जलक्रीड़ा करने की चेष्टा करती थी। इसलिए उनमें से कई स्त्रियाँ नेमिकुमार से कहने लगती कि- “हे देवर। अब तुम कहां जाओगे?' यह कहती हुई वे चारों ओर से उन्हें घेर लेती और जल उछाल-उछाल कर उन्हें खूब तंग कर दिया करती थी।" ___ इसके बाद और भी अनेक प्रकार की जलक्रीड़ा हुई। कभी कोई रमणी जलक्रीड़ा के बहाने उनके गले में अपनी भुजाओं को डाल देती, कभी कोई