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श्री नेमिनाथ-चरित * 347 राजलक्ष्मी की आवश्यकता न होगी। वे आजीवन ब्रह्मचारी रहेंगे और यथासमय दीक्षा ले लेंगे, इसलिए उनकी ओर से आपको सर्वथा निश्चित रहना चाहिए।" ___ देवी के यह वचन सुनकर कृष्ण की चिन्ता दूर हो गयी और उस दिन से वे नेमिकुमार को विशेष आदर की दृष्टि से देखने लगी। ___एक दिन कृष्ण ने अन्त: पुर के समस्त कर्मचारियों से कहा—“यह मेरा भाई नेमिकुमार मुझे प्राण से भी अधिक प्यारा है, इसलिए यदि यह मेरे अन्त:पुर में जाने की इच्छा करे, तो उसमें किसी को बाधा न देनी चाहिए। वह बड़ा ही सदाचारी है, इसलिए अपनी भाभियों के साथ वह हास्य विलास या बातचीत करे तो उसमें दोष नहीं।"
इसके बाद कृष्ण ने अपनी सत्यभामा आदि पत्नियों से भी कह दिया कि तुम्हारा देवर नेमिकुमार यहां आये, तो उससे बोलने चालने में कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि वह मुझे प्राण से भी अधिक प्रिय है।
इधर कृष्ण की अनुमति मिल जाने पर नेमिकुमार उनके अन्त:पुर में जाने आने लगे। वहीं कृष्ण की समस्त पत्नियां उनका अत्यन्त सत्कार करती और वे निर्विकार भाव में उनसे बातचीत कर अपने वासस्थान को लौट आते। धीरे • धीरे यह प्रेम इतना घनिष्ट हो गया कि कृष्ण अपनी पत्नियों को साथ लेकर
क्रीड़ा पर्वतादि पर विचरण करने जाते, तो वहां भी नेमिकुमार को वे अपने . साथ लेते जाते थे।
. एक दिन वसन्त ऋतु में दसों दशार्ह, कुमार, नेमिकुमार अन्त:पुर तथा अनेक नगरजनों को साथ लेकर कृष्ण रैवताचल के उद्यान में गये, वहां पर नन्दनवन में जिस प्रकार सुरासुर के कुमार क्रीड़ा करते हैं, उसी प्रकार समस्त राजकुमार तथा नगरजन क्रीड़ा करने लगे, कई लोग हाथ में वीणा लेकर वसन्त के गायन गाने लगे, कई मदोन्मत्त युवक किन्नर की भांति स्त्रियों सहित नृत्य करने लगे कई लोग अपनी स्त्रियों के साथ चम्पक, बकुल आदि वृक्षों के पुष्प चुनने लगे, कई लोग कुशल मालियों की तरह पुष्पाभरण बनाकर उनसे अपनी प्रियतमाओं को सजाने लगे, कई लोग लता गृह में नव पल्लवों की शैया पर अपनी स्त्रियों के साथ कान्दर्पिक देवताओं की भांति क्रीड़ा करने लगे, कई लोग जलाशय के तट पर बैठकर शीतल मन्द और सुगन्धित समीर का सेवन