________________
346 नेमिनाथ भगवान की बल - परीक्षा
अपने अपने भुजबल का परिचय दें, तो वह बहुत ही अच्छा हो सकता है । "
कृष्ण ने नेमिकुमार का यह प्रस्ताव स्वीकारकर वृक्ष शाखा की भ पहले अपनी भुजा फैला दी और नेमिकुमार ने उसे कमलनाल की भांति क्षणमात्र में झुका दिया। इसके बाद उसी तरह नेमिकुमार ने अपनी भुजा कृष्ण के सामने फैला दी, किन्तु अपना समस्त बल लगा देने पर भी कृष्ण उसे झुका न सके। इससे वे कुछ लज्जित हो गये, किन्तु इस लज्जा को उन्होंने मन में ही. छिपाकर नेमिकुमार को आलिङ्गन करते हुए कहा – “भाई ! तुम्हारा यह बल देखकर आज मुझे असीम आनन्द हुआ है। जिस प्रकार बलराम मेरे बल' से इस संसार को तृणवत् मानता है उसी प्रकार अब मैं आपके बल से जगत् . को तृणवत् समझंगा।"
इतना कह कृष्ण ने नेमिकुमार को विदा कर दिया। इसके बाद उन्होंने बलराम से कहा – “हे बन्धु ! तुमने नेमिकुमार का बल देखा ? मैं समझता हूँ कि त्रिभुवन में कोई भी इसके बल की समानता नहीं कर सकता। मैं वासुदेव होने पर भी उसकी भुजा में उसी तरह लटककर रह गया, जिस प्रकार पक्षी वृक्ष की शाखा में लटक कर रह जाते हैं। नि:संदेह चक्रवर्ती या सुरेन्द्र भी अब नेमिकुमार के सामने नहीं ठहर सकते। यदि इस बल के कारण वह समूचे भरतक्षेत्र को अपने अधिकार में कर ले, तो उसमें भी हमें आश्चर्य न करना चाहिए, और वह कुछ न कुछ ऐसा उद्योग जरूर करेगा, क्योंकि यह कभी सम्भव नहीं कि वह अपना सारा जीवन यों ही बिता दे ।
बलराम ने कहा—“आपका कहना यथार्थ है । इसमें कोई सन्देह नहीं कि नेमिकुमार बड़े ही बलवान है, परन्तु वे जिस तरह बलवान है, उसी तरह राज्यादिक विषयों में निस्पृह भी है । इसीलिए मेरी धारणा है कि वे राज्यादिक at अपने अधिकार में करने की कभी कोई चेष्टा न करेंगे।"
बलराम के यह सब कहने पर भी कृष्ण की चिन्ता दूर न हुई । वे मकुमार को शंका की दृष्टि से ही देखते रहे। उनकी यह अवस्था देखकर एक दिन कुलदेवी ने प्रकट होकर उनसे कहा- “हे कृष्ण ! आप किसी तरह की चिन्ता न कीजिए। नेमिकुमार के विषय में श्रीनमि भगवान पहले ही बतला चुके हैं कि वे शादी न करेंगे और कुमारावस्था में ही तीर्थकर होंगे । उनको