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श्री नेमिनाथ-चरित * 345 पृथ्वी पर उतर आये ? मैं जब शंख बजाता हूँ, तब साधारण राजागण क्षुब्ध हो उठते हैं, परन्तु यह ध्वनि तो ऐसी है, कि इसने मुझको और बलराम को भी विचलित कर दिया है।"
कृष्ण इस प्रकार की चिन्ता कर ही रहे थे कि इतने में आयुधशाला के रक्षकों ने आकर उनसे कहा-“हे प्रभो! आपको यह सुनकर बड़ा ही आश्चर्य होगा, कि अरिष्टनेमि ने खेलते खेलते अनायास आपका शंख उठाकर उसे बजा दिया। हम तो समझते थे कि आपके सिवा और किसी में भी उसे उठाने या बजाने का सामर्थ्य नहीं है।" ___ इसी समय नेमिकुमार भी वहां आ पहुँचे। कृष्ण ने एक सुन्दर आसन पर उन्हें सम्मान पूर्वक बैठाकर पूछा- “भाई ! क्या आज तुमने यह शंख बजाया है, जिसके कारण समूची पृथ्वी अब तक कांप रही है?'
नेमिकुमार ने कहा- “हाँ, मैंने ही उसे बजाया है।" __उनके यह वचन सुनकर कृष्ण को उनका भुज बल देखने की भी इच्छा
हुई, इसलिए उन्होंने उनका गौरव बढ़ाते हुए कहा-“मैं अब तक यही समझता था कि मेरे सिवा और कोई भी इस शंख को नहीं बजा सकता, किन्तु आज मुझे यह देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई, कि तुम उसे अनायास बजा सकते हो। यदि इसी तरह तुम अपने भुजबल का भी परिचय मुझे दे सको, तो मैं · विशेष प्रसन्न हो सकता हूँ। हे बान्धव इसके लिए क्या तुम मुझ से बाहुयुद्ध · · करना पसन्द कर सकते हो?"
नेमिकुमार ने कहा-“हाँ, इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं।" - यह सुनकर कृष्ण उनको अपने साथ आयुधशाला में ले गये। वहां पर नेमिप्रभु अपने दयालु स्वभाव के कारण अपने मन में कहने लगे, कि कृष्ण मेरा भुजबल देखना चाहते हैं, परन्तु मेरे हृदय भुजा या पैर से दबने पर उनकी क्या अवस्था होगी? मुझे कोई ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे उन्हें मेरा भुजबल तो मालूम हो जाय, किन्तु उन्हें किसी प्रकार का कष्ट न हो। यह सोचकर उन्होंने कृष्ण से कहा-"आप जो बाहुयुद्ध पसन्द करते हैं, वह बहुत ही मामूली है। बार-बार जमीन पर लोटने से भली भांति बल की परीक्षा नहीं हो सकती। मेरी समझ में, हम लोग एक दूसरे की भुजा को झुकाकर