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अठारहवाँ परिच्छेद नेमिनाथ भगवान की बल-परीक्षा
एक दिन नेमिकुमार अपने मित्रों के साथ घूमते हुए वासुदेव की आयुधशाला में जा पहुँचे। वहां पर उन्होंने पहले नाना प्रकार के अस्त्र शस्त्र देखें। पश्चात् उन्होंने वह शंख भी देखा जिसकी ध्वनि से तीनों लोक में हाहाकार मच जाता था। उसे देखते ही प्रभु के मन में कौतूहल ऊपज आया, इसलिए वे उसे उठाने लगे। यह देखकर शस्त्रागार के रक्षक चारुकृष्ण ने कहा-“हे प्रभो! यद्यपि आप कृष्ण के भ्राता हैं और बड़े ही बलवान हैं तथापि मेरी धारणा है कि इसे बजाना तो दूर रहा, आप इसे उठा भी न सकेंगे। इस शंख को कृष्ण के सिवा ओर कोई भी उठा या बजा नहीं सकता। अतएव आप इसे उठाने की व्यर्थ चेष्टा न करें।"
चारुकृष्ण इस तरह की बातें कह ही रहा था कि इतने ही में नेमिकुमार ने हँसते हुए वह शंख उठा लिया और उसे इतने जोर से बजाया कि उसकी आवाज से आकाश और पृथ्वी पूरित हो गयी। दुर्ग, पर्वत शिखर और राज प्रसाद गजकर्ण की भांति कांप उठे और बलराम, कृष्ण, दशार्ह तथा अन्यान्य सुभट क्षुब्ध हो उठे। बड़े बड़े हाथियों ने जंजीरें तोड़ डाली और घोड़े भी बन्धनों को तोड़कर भाग खड़े हुए। नगर निवासी इस प्रकार मूर्च्छित हो गये, मानों उन पर वज्रपात हुआ हो और शस्त्रागर के रक्षक भी मूर्छित होकर अपने अपने स्थान पर गिर पड़े।
शंख की विकट ध्वनि सुनकर कृष्ण भी अपने मन में कहने लगे"अहो! यह शंख किसने बजाया? क्या कोई चक्रवर्ती उत्पन्न हुआ या इन्द्र