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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 343 अनिरुद्ध को एक पाठ सिद्ध विद्या दी, जिससे बलिष्ट होकर उसने दीर्घकाल तक बाण से युद्ध किया। " परन्तु अन्त में बाण ने अनिरुद्ध को नाग पाश से जकड़ दिया। यह देख कर उषा को बड़ी चिन्ता हुई, इसलिए उसने प्रज्ञप्ति विद्या द्वारा यह हाल कृष्ण के पास भेजा। कृष्ण, बलराम, प्रद्युम्न और शाम्ब आदि को साथ लेकर तुरन्त वहां आ पहुँचे। अनिरुद्ध का नागपाश गरुड़ध्वज के दर्शन मात्र से ही छिन्न भिन्न हो गया। परन्तु बाण को इतने पर भी चैन न हुआ। वह आत्मबल और शंकर प्रदत्त वरदान के कारण परम गर्विष्ट और मदोन्मत्त हो रहा था। इसलिए उसने कृष्ण से कहा- "तुझे क्या मेरे बल का हाल मालूम नहीं है ? तूने सदा परायी कन्याओं का हरण किया है, इसलिए तेरे पुत्र पौत्रों को भी वैसी ही आदत पड़ गयी है, परन्तु आज तुझे और तेरे इन परिवारवालों को मैं इसका फल चखायें बिना न रहूँगा।" ____ उसके यह गर्व पूर्ण वचन सुनकर कृष्ण ने कहा-“हे दुष्टाशय ! यह तूं कैसी बात कहता है ? कन्या तो किसी न किसी को देनी ही पड़ती है, इसलिए उससे ब्याह करने में कोई दोष नहीं है।" ' कृष्ण के इस वचन पर क्रोधी बाण ने कोई ध्यान न दिया। उसने रोष पूर्वक अपना धनुष उठाया। कृष्ण भी युद्ध के लिए तैयार होकर आये थे, इसलिए दोनों ओर से भयंकर बाणवर्षा होने लगी। यह युद्ध बहुत देर तक होता रहा। अन्त में कृष्ण ने बाण को पराजित कर, उसे यमधाम भेज दिया। अभिमानी बाण की ठीक वहीं दशा हुई, जो गरुड से युद्ध करने पर सर्प की होती है। अन्त में कृष्ण, उषा, अनिरुद्ध और प्रद्युम्न आदि को साथ लेकर द्वारिका नगरी लौट आये।
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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