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342 * कृष्ण वासुदेव का राज्याभिषेक उषा नामक एक कन्या थी। उसने अपने अनुरूप वर प्राप्त करने के लिए गौरी नामक विद्या की आराधना की। इसलिए गौरी ने प्रसन्न होकर उससे कहा कि कृष्ण वासुदेव का पौत्र अनिरुद्ध, जो रूप और गुण में देव समान है, वही तुम्हारा पति होगा। यह सुनकर उषा परम प्रसन्न हुई और अपने भावी पति के ध्यान में मग्न रहने लगी।
इसी समय बाण ने भी गौरी विद्या के प्रिय शंकर नामक देव की आराधना की। उसके प्रसन्न होने पर बाण ने कहा- “मुझे ऐसा वर दीजिए जिसके प्रभाव से संसार में मुझे कोई भी जीत न सके।" उसकी यह याचना सुनकर गौरी ने शंकर से कहा- "इसे ऐसा वर देना ठीक नहीं, क्योंकि मैं इससे पहले ही इसकी पुत्री को यह वर दे चुकी हूं कि अनिरुद्ध तुझे पति रूप में प्राप्त होगा। यदि उस समय युद्ध हुआ तो आपके इस वर के कारण घोर अनर्थ हो जायगा।" यह सुनकर प्रिय शंकर ने बाण से कहा- "स्त्री विषयक कार्य को छोड़कर और सभी कार्यों में सर्वत्र तेरी जय होगी।” बाण ने इस वरदान से भी संतोष मान लिया।
उधर उषा ज्यों ज्यों बड़ी होती जाती थी, त्यों त्यों उसका रूप सौन्दर्य बढ़ता जाता था। उसके उस अलौकिक रूप पर मुग्ध हो अनेक विद्याधर और मानव राजाओं ने उससे ब्याह करने की इच्छा प्रकट की, परन्तु उषा की ना पसन्दगी के कारण उसने किसी की भी याचना स्वीकार न की। उषा के मन में तो अनिरुद्ध बसा हुआ था, इसलिए किसी दूसरे की प्रार्थना वह स्वीकार ही कैसे कर सकती थी? एक दिन उसने चित्रलेखा नामक विद्याधरी को अनिरुद्ध के पास भेजकर उसे चुपचाप अपने महल में बुलवा लिया और उसके साथ गान्धर्व विवाह कर डाला।
विवाह करने के बाद अनिरुद्ध उसे अपने साथ लेकर द्वारिका नगरी की ओर चलने लगा। चलते समय उसने घोषित कर दिया, कि मैं उषा को हरण किये जा रहा हूँ। बाण को यह हाल मालूम होने पर उसने एक बड़ी सेना लेकर
अनिरुद्ध को चारों ओर से घेर लिया। यद्यपि अनिरुद्ध भी अपने पिता ओर पितामह की ही भांति परम बलवान था, परन्तु बाण के सामने ठहरना कोई साधारण काम न था। उषा को उसकी यह कमजोरी मालूम होने पर उसने