________________
श्री नेमिनाथ-चरित * 337 देर में वसुदेव भी दोनों राजकुमार उनकी नव विवाहिता पत्नियों और विद्याधरों के साथ वहां आ पहंचे। समुद्रविजय ने उन सबका यथोचित सत्कार किया। इसके बाद समस्त विद्याधरों ने सुवर्ण, रत्न, विविध मुक्ताफल, हाथी, घोड़े आदि बहुमूल्य चीजें कृष्ण की सेवा में भेंट स्वरूप रखकर उनकी अधीनता स्वीकार की।
इसके बाद कृष्ण ने जयसेन आदि की और सहदेव ने जरासन्ध आदि की उत्तर क्रिया की। जीवयशा परम अभिमानी थी। उसने पति और पिता का कुल सहित संहार अपनी आँखों से देखने के बाद अब अग्नि प्रवेश कर अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की।
___ यह पहले ही बतलाया जा चुका है कि यादवों ने जिस स्थान पर शिविर स्थापित किया था, उस स्थान पर सेनपल्ली नामक एक ग्राम था। युद्ध में विजय होने के कारण यादवों को वहां पर अत्यन्त आनन्द प्राप्त हुआ था। इसलिए कृष्ण ने. उस ग्राम का नाम आनन्दपुर रख दिया। उससे थोड़ी दूर पर उन्होंने शंखपुर नामक एक नवीन नगर बसाया और उसमें एक सुन्दर प्रासाद बनवाकर वहां उन्होंने धरणेन्द्र प्रदत्त पार्श्वनाथ भगवान का बिम्ब स्थापित किया।
. इसके बाद अनेक यक्ष और विद्याधरों के साथ उसी स्थान में रहते हुए कृष्ण ने छः मास में अर्धभरत को अपने अधिकार में कर लिया। इसके बाद वे मगध देश में गये। वहां कोटिशिला नामक एक महाशिला थी, जो एक योजन लम्बी, एक योजन चौड़ी और अर्धभरत के देव देवियों द्वारा अधिष्टित थी। उसे कृष्ण ने अपने बायें हाथ द्वारा पृथ्वी से चार अंगुल ऊंचे उठाकर संसार को अपनी अलौकिक शक्ति का परिचय दिया। इस महाशिला के सम्बन्ध में कहा गया है कि
प्रथम वासुदेव उसे भुजा के अग्रभाग तक, दूसरे वासुदेव मस्तक तक, तीसरे कण्ठ तक, चौथे छाती तक, पांचवे हृदय तक छठे कमर तक, सातवें • जंघाओं तक, आठवें जानु तक और नवें वासुदेव भूमि से चार अंगुल की ऊंचाई तक ऊपर उठा सकते हैं, क्योंकि अवसर्पिणी काल में क्रमश: उनका बल क्षीण होता जाता है।