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336 * कृष्ण वासुदेव का राज्याभिषेक अब कोई काम न होने के कारण मातलि को रथ सहित स्वर्ग के लिए विदा कर दिया। तदनन्तर कृष्ण और नेमिकुमार भी अपने समस्त सैनिकों के साथ . शिविर में चले गये। इधर राजा समुद्रविजय भी शिविर में जाकर वसुदेव के आगमन की प्रतीक्षा करने लगे।
दूसरे दिन समुद्रविजय और वासुदेव के निकट तीन विद्याधरियों ने आकर कहा-“हे प्रभो शाम्ब तथा अनेक विद्याधरों के साथ वसुदेव शीघ्र ही आपके पास आ रहे हैं। उनकी विचित्र कथा भी सुनिए। वसुदेव जब यहां से वेताढ्य पर्वत पर गये थे, तब वहां उन्होंने शूर्पक, नीलकण्ठ, अंगारक और मानसवेग आदि अपने समस्त पूर्व वैरियों को घेर घेरकर उनके साथ घोर युद्ध किया। इतने ही में कल एक देवता ने खबर दी कि जरासन्ध को मारकर कृष्ण . वासुदेव हो गये हैं। यह सुनकर सब विद्याधर अपने अपने हथियारं छोड़कर . अपने स्वामी मन्दरवेग के पास गये। मन्दरवेग ने सब हाल सुनकर उनको आज्ञा दी, कि यदि तुम लोग अपना कल्याण चाहते हो तो युद्ध का विचार छोड़कर इसी समय सुन्दर भेटें ले आओ। हम लोग वसुदेव को मध्यस्थ बनाकर हरि की शरण में जायेंगे।" ____ विद्याधरपति की यह बात सब विद्याधरों ने सहर्ष मान ली। वे उसी समय अपने अपने घर से सुन्दर और बहुमूल्य भेटें ले आये। विद्याधर पति उन सब को साथ लेकर वसुदेव के पास गया। वसुदेव ने उसकी प्रार्थना सुनकर अपने शत्रुओं का अपराध क्षमा कर दिया। इससे समस्त विद्याधरों को अत्यन्त आनन्द हुआ। इसी समय विद्याधरपति ने अपनी बहिन का व्याह प्रद्युम्न के साथ कर दिया। त्रिपथऋषभ नामक एक दूसरे राजा ने भी अपनी पुत्री का विवाह प्रद्युम्न के साथ कर दिया। देवर्षभ और वायुपथ नामक दो राजाओं ने अपनी अपनी पुत्री शाम्बकुमार से ब्याह दी। यह विवाह कार्य सम्पन्न हो जाने के बाद वे सब यहां आने के लिए वैताढय पर्वत से चल चूके हैं उन्होंने पहले से यह समाचार आप को सूचित करने के लिए हमें यहां भेजा है। वे अब थोड़ी ही देर में यहां आ पहुँचेंगे।" ____ विद्याधरियों के मुख से यह समाचार सुनकर कृष्ण और समुद्रविजय को बड़ा ही आनन्द हुआ। वे उत्सकुता पूर्वक वसुदेव की राह देखने लगे। थोड़ी