SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्रहवाँ परिच्छेद कृष्ण वासुदेव का राज्याभिषेक 335 युद्ध समाप्त हो जाने पर नेमिनाथ प्रभु ने कृष्ण के शत्रु राजाओं को बन्धन मुक्त कर दिया। फलत: वे हाथ जोड़कर, प्रभु को प्रणाम कर कहने लगे — " हे नाथ! यदुवंश में तीनों लोक के स्वामी आपका अवतार होने से ही हम और हमारे स्वामी जरासन्ध पराजय को प्राप्त हुए । इसमें कोई सन्देह नहीं कि वासुदेव प्रति वासुदेव को मारते ही है, फिर भी आप जैसे भ्राता जिसके सहायक हो उसके लिए तो कहना ही क्या है ? किन्तु भवितव्यता को कौन टाल सकता है? संसार में जो कुछ होता है, वह विधाता (भाग्यपूर्वकर्म) के करने पर ही होता है। अब हम सब लोग आपकी शरण में आये हैं, ताकि हमारा कल्याण हो, क्योंकि संसार में केवल आप ही निष्कारण बन्धु हैं। जो आपकी शरण में आता है, उसका सदैव मंगल ही होता है । इसलिए हम आपके निकट अपने मंगल की याचना करते हैं । राजाओं के यह वचन सुनकर नेमिकुमार उन्हें कृष्ण के पास लेकर गये । कृष्ण, नेमिकुमार को देखते ही रथ से उतरकर उनसे भेंट की। इसके बाद मकुमार की बात मानकर कृष्ण ने सब राजाओं का अपराध क्षमा कर दिया। साथ ही उन्होंने अपने काका समुद्रविजय की आज्ञा से जरासन्ध के पुत्र सहदेव को मगधदेश का चतुर्थ भाग देकर, उसे उसके पिता के सिंहासन पर बैठाया । इसी तरह उन्होंने समुद्रविजय के पुत्र महानेमि को शौरीपुर में, हिरण्यनाभ के पुत्र रुक्मनाभ को कोशला नगरी में और उग्रसेन के पुत्र धर को मथुरा नगरी में राजसिंहासन पर स्थापित किया । इतने ही में सूर्यास्त हो गया । नेमिकुमार ने
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy