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________________ 330 * जरासन्ध और शिशुपाल वध जरासन्ध और उसके पुत्रों की यह रण निपुणता देखकर बलराम और कृष्ण विशेष सावधानी के साथ युद्ध करने लगे। इस समय दोनों ओर से इतनी बाणवर्षा होती थी, कि वे मार्ग में ही परस्पर टकरा जाते थे। इस प्रकार बाणों के टकराने पर उनसे चिनगारियां निकल पड़ती थी, जो सैनिकों पर गिरने से अग्निवर्षा का काम करती थी। ___ जरासन्ध के पुत्रों को विशेष उपद्रव करते देख, इसी समय बलराम ने उसके अट्ठाइस पुत्रों को हल से खींचकर मूशल से चावल की भांति कूट डाला। यह देख, जरासन्ध थोड़ी देर के लिए सहम गये और अपने मन में कहने लगे कि-"मैं ज्यों-ज्यों इस गोपाल की उपेक्षा करता हूँ, त्यों त्यों इसका मिजाज चढ़ता जा रहा है। अब मैं इसे कदापि जीता न छोडूंगा।" इतना कह, जरासन्ध ने बलराम के हृदय पर वज्र समान गदा का प्रहार किया, जिससे वे व्याकुल हो रक्त वमन करने लगे। बलराम की यह अवस्था देखकर यादव सेना में घोर हाहाकार मच गया। जरासन्ध ने इसी अवस्था में बलराम पर पुन: प्रहार करने की इच्छा की, परन्तु इसी समय अर्जुन बीच में पड़कर उससे युद्ध करने लगे, इसलिए उसकी यह इच्छा पूर्ण न हो सकी। .. बलराम की व्याकुलता देखकर कृष्ण को बड़ा ही क्रोध आया। उन्होंने इसी समय जरासन्ध के 69 पुत्रों को, जो उनसे युद्ध कर रहे थे, मार डाला। अपने इन पुत्रों की मृत्यु से जरासन्ध का ध्यान कृष्ण की ओर आकर्षित हो गया। वह अपने मन में कहने लगा कि-बलराम तो मर ही जायगा और अर्जुन को मारने से लाभ भी क्या है ? इसलिए अब सबसे पहले कृष्ण की ही खबर लेनी चाहिए।" ___यह सोचकर जरासन्ध कृष्ण की ओर झपटा। यह देखकर लोग कहने लगे, कि अब कृष्ण की खैर नहीं। इसी समय मातलि ने श्रीनेमिनाथ प्रभु से कहा-“हे भगवन् ! जिस तरह अष्टापद के सामने हाथी का बच्चा किसी हिसाब में नहीं होता, उसी प्रकार आपके सामने यह जरासन्ध किसी हिसाब में नहीं है। आज आप उसकी उपेक्षा कर रहे हैं, तभी तो यह संसार से यादवों का नाम मिटा देने को तैयार हुआ है। इसलिए हे जगदीश! आज आप अपने बल की कुछ लीला दिखलाइए! हे प्रभो! यद्यपि आप जन्म से ही सावध कर्म से
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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