________________
श्री नेमिनाथ-चरित * 329 भाग जाते। इससे कृष्ण की समूची सेना में खलबली मच गयी।
. यादव सेना की यह अवस्था देखकर सेनापति शिशुपाल को हँसी आ गयी। उसने कृष्ण से व्यंग में कहा—“हे कृष्ण ! यह गोकुल नहीं है यह तो क्षत्रियों का संग्राम है!"
कृष्ण ने मुस्कुराकर कहा—“बेशक, इसलिए मैं कहता हूँ कि आप अभी से भाग जाइये, वर्ना आगे पीछे आपको भागना ही पड़ेगा। रुक्मिणी हरण के समय आपने कितनी देर तक संग्राम किया था, यह क्या आपको याद नहीं है?"
कृष्ण के यह मर्मवचन शिशुपाल के हृदय में बाण की तरह चुभ गये। उसने कृष्ण को मारने के लिए उन पर तीक्ष्ण बाण छोड़े, किन्तु कृष्ण ने उन बाणों से अपनी रक्षा कर, अपने बाणों से उसके धनुष, कवच और रथ को तोड़ फोड़ डाला। इससे शिशुपाल तलवार खींचकर बकवाद करता हुआ कृष्ण को मारने दौड़ा। कृष्ण ने अब विलम्ब करना उचित न समझा। उन्होंने उसी समय उसका शिर काटकर उसकी जीवन लीला समाप्त कर दी।
शिशुपाल के इस वध से जरासन्ध और भी क्रूद्ध हो गया। उसने यम समान भीषण मुखाकृति बनाकर यादवों से कहा-“अरे! तुम लोग व्यर्थ ही
अपना प्राण क्यों दे रहे हो? अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है उन दोनों दुर्मति 'गोपालों को मुझे सौंप दो, मैं सहर्ष वापस चला जाऊंगा।"
- उसके यह वचन सुरकर यादवगण कुचले हुए सर्प की भांति झल्ला उठे। वे विविध शस्त्र उठाकर जरासन्ध को मारने के लिए दौड़ पड़े। जरासन्ध तो तैयार ही था। अंकेला होने पर भी वह चारों ओर यादवों से इस प्रकार युद्ध करने लगा, मानो उसने अनेक रूप धारण किये हो। उसने भीषण बाण वर्षा कर अनेक यादवों को आहत कर डाला। वह अपने शत्रुओं पर इतनी तेजी से वार करता था, कि उसके सामने किसी को भी खड़े रहने का साहस न पड़ता था। एक और उसकी विकट बाण वर्षा से समस्त यादव सेना अस्त व्यस्त हो गयी। दूसरी ओर जरासन्ध के अट्ठाइस पुत्रों ने बलराम के दांत खट्टे कर दिये और तीसरी ओर उसके पुत्रों ने कृष्ण को मार डालने के विचार से उनको चारों और से घेर लिया।