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328 जरासन्ध और शिशुपाल वध
वर्णवाले जलकपिध्वज रथ में सिन्धु देश के मण्डन रूप श्री वितभयपत्तन के स्वामी राजा हैं वह देखिए, पद्मरथ नगर के राजा पद्यरथ हैं, जिनके अश्वों
कान्ति पद्म के समान है । उस कामध्वज रथ पर राजा सारण दिखायी दे रहे हैं वह बलराम के मामा विदूरथ का रथ हैं, जिसमें पंचतिलक वाले अश्व हुए हैं और जिसकी ध्वजा पर कुंभ का चिन्ह अंकित है। सेना के मध्यभाग में सफेद घोड़ेवाले उस गरुड़ध्वज रथ में आपका परम शत्रु कृष्ण है। कृष्ण की दाहिनी ओर जंगम कैलास के समान वह बलराम है। इनके अतिरिक्त यादव सेना में ओर भी अनेक सुभट है, जिनका परिचय देना इस समय कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव है।
यादव सेना के सैनिकों का यह परिचय पाकर जरासन्ध की आँखें लाल हो गयी। उसने सारथी को अपना रथ बलराम और कृष्ण के सामने ले चलने का आदेश दिया। जरासन्ध का पुत्र युवराज यवनकुमार इसी समय वसुदेव के पुत्र अक्रूरादि से जा भिड़ा। जिस प्रकार अष्टापद के हाथी और सिंहों में घोर युद्ध होता है, उसी प्रकार महाभुज यवन और अनुरादि में भीषण संग्राम होने लगा । कुछ देर के बाद बलराम के लघु भ्राता सारण ने विविध शस्त्रों की घोर वर्षा कर चारों ओर से यवन का रास्ता रोक दिया। इस पर यवन ने हाथी पर सवार हो, सारण का रथ तोड़ डाला। इससे सारण को भी बड़ा ही क्रोध आ गया और उसने उसी समय यवनकुमार का शिर काट लिया। साथ ही उसने उस हाथी को भी काट डाला, जिसपर यवनकुमार बैठे थे। सारण का यह अद्भुत कार्य देखकर यादव सेना मारे आनन्द के मत्तमयूर की भांति नाच उठी।
इस तरह अपने युवराज को अपनी आँखों के सामने मरते देखकर जरासन्ध के क्रोध का वारापार न रहा । वह यादवों का संहार करने के लिए उसी तरह झपट पड़ा, जिस तरह सिंह हरिणों के दल पर टूट पड़ता है। उसने देख ही देखते आनन्द, शत्रुदमन, नन्दन, श्रीध्वज, ध्रुव, देवानन्द, पीठ, हरिषेण, नरदेव और चारुदत्त नामक बलराम के दस पुत्रों को मार डाला। उसके इस कार्य से यादव सेना में आतंक छा गया और वह युद्ध भूमि को छोड़कर इधर उधर भागने लगी। जरासन्ध जिधर जाता, उधर ही मैदान साफ हो जाता। कुछ लोगों को तो वह मार डालता और कुछ लोग उसके भय के कारण मैदान छोड़कर
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