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श्री नेमिनाथ-चरित * 327 परन्तु अनाधृष्टि ने तीक्ष्ण बाणों से उसे बीच में ही काट डाला। 6. अपने मुद्रर का प्रहार व्यर्थ जाते देखकर हिरण्यनाभ को बड़ा ही क्रोध आया। वह अपने रथ पर से कूद पड़ा और ढाल तलवार लेकर अनाधृष्टि को मारने दौड़ा। उसे अपनी ओर आते देखकर अनाधृष्टि भी रथ से कूदकर उसके सामने आ गया। दोनों में बड़ी देर तक युद्ध हुआ। जब अनाधृष्टि से युद्ध करते करते हिरण्यनाभ थक गया, तब अनाधृष्टि ने मौका देखकर तलवार से उसका शिर काट लिया। उसकी मृत्यु होते ही जरासन्ध की सेना में हाहाकार मच गया। उस समय सूर्यास्त भी हो चला था। इसलिए जरासन्ध के सैनिक जरासन्ध के पास और कृष्ण के सैनिक कृष्ण के पास चले गये।
दूसरे दिन सूर्योदय होते ही फिर दोनों दलों में घोर युद्ध आरंभ हो गया। जरासन्ध ने आज महाबली शिशुपाल को अपना सेनापति बनाया। यादवों ने पहले दिन की तरह आज भी गरूड़ व्यूह और शिशुपाल ने चक्रव्यूह बनवाया। युद्ध आरम्भ होने के पहले जरासन्ध रण भूमि में उपस्थित हो, सब व्यवस्था देखने लगा। अपने सैन्य की सब व्यवस्था देखने के बाद उसने हंसक मन्त्री से यादव सेना के सुभटों का परिचय पूछा। हंसक ने अंगुली उठा उठाकर उन सबों का परिचय देते हुए कहा-“महाराज! देखिए, उस श्याम अश्ववाले रथ में अनाधुष्टि है, जिसे यादवों ने अपना सेनापति बनाया है। उसकी ध्वजा में गज का लाञ्छन है, जिससे वह तुरन्त पहचाना जा सकता है। उस नील अश्ववाले रथ में युधिष्ठिर है। श्वेत अश्व और कपिध्वजवाला वह रथ अर्जुन का है। यह नीलकमल के पत्र समान कान्तिवाले अश्व जिस रथ में जुते हैं, उसमें भीमसेन बैठे हैं। वह देखों, राजा समुद्रविजय हैं। उनके अश्वों का वर्ण सुवर्ण के समान
और ध्वजा पर सिंह का चिन्ह है। वह शुक्रवर्ण अश्ववाले रथ में अरिष्टनेमि है उनकी ध्वजा में वृषभ का चिन्ह है। उस कबरे अश्ववाले रथ में अक्रूर हैं। उनकी ध्वजा में कदली का चिन्ह है। वह देखिए, सात्यकि का रथ है, जिसमें तीतर
और उड़द जैसे वर्ण के अश्व जुते हुए हैं। कुमुद समान कान्तिवाले वह अश्व जिस रथ में जुते हुए हैं, उसमें वह महानेमिकुमार हैं। उस शुक्रचञ्चु जैसे अश्ववाले रथ में राजा उग्रसेन बैठे हुए हैं। वह देखिए, जरतकुमार का रथ है। उसके अश्वों वाले स्थपर राजा श्लक्ष्णरोम का पुत्र सिंहल बैठा हुआ है। इस कजले और रक्त