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________________ 326 * जरासन्ध और शिशुपाल वध इसलिए वह हिरण्यनाभ के सामने आकर उससे युद्ध करने लगा उधर जरासन्ध आदिक राजा भी भीम और अर्जुनादिक सुभटों के साथ पृथक् पृथक् द्वन्द्वयुद्ध करने लगे। प्रागज्योतिष्क का भगदत्त नामक राजा भी जरासन्ध की ओर से रण निमन्त्रण पाकर इस युद्ध में भाग लेने आया था। वह अपने हाथी पर बैठकर महानेमि के सामने आ उठा और उनको ललकारकर कहने लगा-“मैं तेरे भाई के साले रुक्मि या अश्मक के समान नहीं हैं। मैं तो नारकियों का. बैरी यम हैं। इसलिए अब तूं सावधान हो जा।" इतना कह उसने अपने हाथी को वेगपूर्वक महानेमि की ओर बढ़ाया। महानेमि भी सावधान ही थे। उनके सारथी ने उनके रथ को कई बार : मण्डलाकार घुमाकर अन्त में उसे एक स्थान पर खड़ा कर दिया। इसके बाद महानेमि ने शीघ्र ही उस हाथी के पैरों में बाण मारकर उसे जर्जरित कर दिया, फलत: वह हाथी भगदत्त सहित भूमिपर गिर पड़ा। उसकी यह दुर्गति देखकर महानेमि को उस पर दया आ गयी। उन्होंने हँसकर उससे कहा – “क्यों तुम तो रुक्मि नहीं हो!" यह कहते हुए धनुष के अग्रभाग से स्पर्श कर उसे जिन्दा ही . छोड़ दिया। ____ अब भूरिश्रव और सात्यकि में भयकर युद्ध आरम्भ हुआ। पहले वह दोनों दिव्य शस्त्रों द्वारा युद्ध करते रहे। शस्त्र पूरे हो जाने पर दोनों में घोर मुष्टियुद्ध हुआ यह युद्ध परम दर्शनीय था। दो में से एक भी वीर जिस समय भूमि पर गिरता, उस समय पृथ्वी हिल उठती थी और जिस समय वे ताल ठोकते थे, उस समय सब को मेघ गर्जना का भ्रम होता था। यह युद्ध भी बहुत देर तक होता रहा। अन्त में जब भूरिश्रव थक गया, तब सात्यकि ने उसे जमीन पर पटककर, उसकी छाती पर दोनों घुटने रखकर, उसकी गर्दन पीछे को मोड़ दी, जिससे तुरन्त उसका प्रशान्त हो गया। ___ दूसरी ओर वीर अनाधृष्टि ने राजा हिरण्यनाभ का धनुष काट डाला। इससे हिरण्यनाभ ने उस पर भयंकर मुद्गर छोड़ा। वह मुद्गर जिस समय ज्वाला समूह की भांति अनाधृष्टि की ओर अग्रसर हुआ, उस समय दसों दिशाएं उसके प्रकाश से अलौकित हो उठी। वह मुद्गर वास्तव में बड़ा ही घातक शस्त्र था,
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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