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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 325 डट गये और भीम ने द्युत की बात याद कराकर दीर्घकाल तक विविध शस्त्रों द्वारा दुर्योधन को थकाकर अंत में गदा द्वारा मारकर यम सदन भेज दिया। उसकी मृत्यु होते ही उसके सैनिक भागकर सेनापति हिरण्यनाभ की शरण में गये और पाण्डव तथा यादवगण सेनापति अनाधृष्टि के निकट चले गये। ____ अपनी सेना को स्थान स्थान पर पराजित होते देखकर सेनापति हिरण्यनाभ बेतरह चिढ़ उठा और यादवों को ललकारता हुआ सेना के अग्रभाग में आ खड़ा हुआ। उसे देखकर राजा अभिचन्द्र ने कहा-“हे नृपाधम ! एक नीच पुरुष की भांति तूं बकवाद क्या करता है? क्षत्रिय वचन शूर नहीं होते, बल्कि पराक्रम शूर होते हैं।" __अभिचन्द्र के यह वचन सुनकर हिरण्यनाभ ने क्रोधपूर्वक उस पर कई बाण छोड़े, परन्तु अर्जुन ने उनको बीच ही में काट दिये। अर्जुन का यह कार्य देखकर हिरण्यनाभ ने उन पर भी कई बाण छोड़े परन्तु इसी बीच भीमसेन वहां आ पहुँचे और उन्होंने गदा का प्रहार कर हिरण्यनाभ को रथ से नीचे गिरा दिया। हिरण्यनाभ इससे लज्जित होकर दूसरे रथ पर बैठ गया और क्रोधपूर्वक यादव सेना पर ऐसी बाणवृष्टि करने लगा, कि जिससे एक भी ऐसा आदमी न 'बचा, जिस पर कहीं चोट न आयी हो। उसकी इस बेढब मार से यादव सेना में खलबली मच गयी। . . हिरण्यनाभ की यह उद्दण्डता देखकर समुद्रविजय का पुत्र जयसेन क्रुद्ध हो उठा और धनुष खींचकर उससे युद्ध करने को तैयार हुआ। यह देखकर हिरण्यनाभ ने कहा- "हे जयसेन! तूं व्यर्थ ही मरने के लिए क्यों तैयार हआ है?' यह कहने के साथ ही उसने जयसेन के सारथी को मार डाला। इससे जयसेन ने तुरन्त उसके कवच, धनुष और ध्वज को छेदकर उसके सारथी को मार डाला। जयसेन के इस कार्य ने हिरण्यनाभ की क्रोधाग्नि में आहती का काम दिया। उसने जयसेन को मारने के लिए उस पर दस मर्मवेधी बाण छोड़े, जिससे जयसेन का प्राणान्त हो गया। भाई की यह अवस्था देखकर महीधर अपने रथ से कूद पड़ा और ढाल तलवार लेकर हिण्यनाभ को मारने दौड़ा, परन्तु हिरण्यनाभ ने दूर से ही उसे देखकर क्षुरप्र बाण से उसका शिर काट डाला। अपने दो भाइयों की यह गति देखकर अनाधुष्टि को क्रोध आ गया
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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