________________
श्री नेमिनाथ - चरित 331
विमुख हैं,. तथापि शत्रुओं द्वारा पीड़ित अपने कुल की आपको उपेक्षा न करनी चाहिए। "
सारथी के यह वचन सुनकर श्रीनेमिनाथ प्रभु ने क्रोध के बिना ही पौरन्दर शंख को हाथ में लेकर उसे इस तरह फुंका, कि उसकी प्रबल ध्वनि से दशों दिशाएं व्याप्त हो गयी। मेघनाद से भी अधिक भयंकर यह नाद सुनकर जरासन्ध के सैनिक क्षुब्ध हो उठे और यादव सेना में उत्साह और उमंग की नयी लहर दौड़ गयी।
इसके बाद श्रीनेमि की आज्ञा से मातलि ने उनके रथ को समरभूमि में मण्डलाकार घुमाया और वे इन्द्र धनुष धारण कर शत्रुसेना पर भयंकर बाणवर्षा करने लगे। कुछ ही देर में उन्होंने समस्त रणभूमि को बाणों से व्याप्त कर दिया । इससे शत्रु सेना में हाहाकार मच गया और बड़े बड़े सैनिक प्राण लेकर भागने लगे। श्रीनेमिनाथ प्रभु ने अनेक सैनिकों के धनुष और रथ तोड़ डाले और अनेकों के मुकुट भूमि पर गिरा दिये । परन्तु उनका कोई कुछ भी न कर सका । उन पर प्रहार करना दूर रहा बल्कि, उनकी और आंख उठाकर देखने का भी किसी को साहस न हुआ । उछलते हुए महासागर के सामने क्या पर्वत कभी ठहर सकते हैं? श्रीनेमिनाथ प्रभु ने अकेले ही अनेक राजाओं को बांध लिए । जरासन्ध प्रति वासुदेव था। इसलिए प्रभु ने सोचा कि प्रति वासुदेव की मृत्यु तो वसुदेव के ही हाथ से होनी चाहिए, यह सोचकर उसे न मारा। थोड़ी ही देर में . यह अद्भुत पराक्रम दिखाकर प्रभु ने अपना रथ फेर लिया।
शत्रुसेना के अस्त व्यस्त हो जाने से यादव सेना का उत्साह चौगुना बढ़ गया और वह शत्रुओं की शेष सेना की उसी तरह काटने लगी, जिस तरह किसान खेत का अनाज काटता है । पाण्डवों ने भी शेष कौरवों को इसी समय समाप्त कर अपने वैर का बदला ले लिया । बलराम भी इतने समय में स्वस्थ हो गये और उन्होंने अपने हल मूशल द्वारा जरासन्ध के अनेक सैनिकों को यमधाम भेज दिया।
इससे जरासन्ध कुछ हताश हो गया । वह समझ गया कि यादवों को जीतना बहुत ही कठिन है। कोई दूसरा उपाय न देख, अन्त में उसने अपनी जरा विद्या का प्रयोग कर समस्त यादव सेना को वृद्ध बना दिया। इससे सब लोग