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श्री नेमिनाथ चरित : 323
बड़ा ही-क्रोध आया और उसने दूसरा धनुष लेकर युधिष्ठिर पर इतनी बाणवृष्टि की, कि वे उनके कारण वर्षाकाल के सूर्य की भांति छिप गये । युधिष्ठिर इससे कुछ विचलित हो उठे और उन्होंने उस पर बिजली के समान एक भयंकर शक्ति छोड़ दी। जिस प्रकार अग्नि की लपट पड़ने पर गोह तत्काल जलकर मर जाती है, उसी प्रकार उस शक्ति ने शल्य की जीवन लीला समाप्त कर दी। उस शक्ति के डर से और भी अनेक राजा उस समय रणक्षेत्र से भाग खड़े हुए। भीम ने भी दुर्योधन के भाई दुःशासन को द्यूत कपट की याद दिलाकर क्षणमात्र में मार
डाला ।
इसी प्रकार शकुनि और सहदेव में भी बहुत देर तक माया और शस्त्रयुद्ध होता रहा। अन्त में सहदेव ने भी उस पर एक घातक बाण छोड़ा, परन्तु वह शकुनि तक न पहुँचने पाया । दुर्योधन ने क्षत्रियव्रत का त्याग कर बीच में ही तीक्ष्ण बाण से उसे काट डाला। यह देखकर सहदेव ने ललकार कर उससे कहा - " हे दुर्योधन ! द्युत की भांति रण में भी तूं छल करता है । परन्तु यह कायरों का काम है, वीरपुरुषों का नहीं । तुम दोनों परम कपटी हो और इस समय एक साथ ही मेरे हाथ लग गये हो । अब तुम दोनों की जीवन लीला मैं एक साथ ही समाप्त करूँगा, जिससे तुम दोनों को एक दूसरे का वियोग न सहन करना पड़े।
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इतना कह सहदेव ने तीक्ष्ण बाणों से दुर्योधन को ढक दिया। दुर्योधन ने भी बाणवर्षा कर सहदेव को बहुत तंग किया। उसने न केवल उनका धनुष दण्ड ही काट डाला, बल्कि उनका नाश करने के लिये यम के मुख समान एक ऐसा 'बाण छोड़ा, जो शायद उनका प्राण लेकर ही मानता, परन्तु अर्जुन ने उस बाण को अपने गरुड़ बाण से बीच में ही रोक दिया। शकुनि ने भी सहदेव को उसी तरह बाणों द्वारा चारों ओर से घेर लिया, जिस तरह मेघ चारों ओर से पर्वत को घेर लेते हैं। इससे सहदेव ने क्रुद्ध होकर उसके सारथी और अश्व को मार डाला, रथ को तोड़ डाला और अन्त में शकुनि का भी मस्तक काट डाला।
उधर नकुल ने भी क्षणमात्र में उलूक को रथ से नीचे गिरा दिया। इससे उसने भागकर दुर्मर्षण राजा के रथ पर आश्रय ग्रहण किया। परन्तु दुर्मर्षण आदि छ: ओं राजाओं को द्रौपदी के पुत्रों ने पराजित कर दिया, इसलिए उन सबों ने भागकर दुर्योधन का आश्रय लिया ।