________________
322 * जरासन्ध और शिशुपाल वध ने धृष्टद्युम्न को, धरण ने अष्टक नृप को, अभिचन्द्र ने उत्कट शतधन्वा को, पूरण ने द्रुपद को, सुनेमि ने कुन्ति भोज को, सत्यनेमि ने महापद्य को ओर दृढ़नेमि ने श्रीदेव को मार डाला। तदनन्तर इन सबों की सेना अपने सेनापति राजा हिरण्यनाभ की शरण में जाकर रहने लगी। ___ इसी तरह दूसरी और भीम, अर्जुन तथा बलराम के वीर पुत्रों ने कौरवों को परेशान कर डाला। अर्जुन ने उन पर इतनी बाण वृष्टि कि की-चारों ओर. अन्धकार छा गया। गाण्डीव धनुष के निर्घोष ने सबको बधिर सा बना दिया। ... उस समय अर्जुन की चपलता और स्फूर्ति भी देखने योग्य हो रही थी। वे बाण को कब हाथ में लेते थे, कब धनुष पर चढ़ाते थे और कब उसे छोड़ते थे। यह . . आकाश के निमेष रहित देवताओं को भी ज्ञात न हो सकता था। उनकी स्फूर्ति : के कारण सबको ऐसा मालूम होता था, मानो यह सब काम वे एक साथ ही कर डालते हैं। ___अर्जुन की इस बाण वर्षा से व्याकुल हो, दुर्योधन, कासि, त्रिगर्त, सबल, कपोत, रोमराज, चित्रसेन, जयद्रथ, सौवीर, जयसेन, शूरसेन और सोमक यह सभी राजा, क्षत्रिय धर्म को भूलकर एक साथ ही अर्जुन से युद्ध करने लगे। इसी समय सहदेव शकुनि से, भीम दु:शासन से, नकुल उलूक से, युधिष्ठिर शल्स से, पाण्डव पुत्र दुर्मर्षणादिक छ: योद्धाओं से ओर बलराम के पुत्र अन्यान्य राजाओं से भिड़ गये। ___ अर्जुन पर दुर्योधन और उसके संगी राजाओं ने एक साथ ही अगणित बाणों की वृष्टि की, किन्तु अर्जुन ने क्षणमात्र में उन सबों को कमलनाल की भांति काट डाला। इसके बाद अर्जुन ने दुर्योधन के सारथी को मार डाला, रथ
और अश्व को छिन्न भिन्न कर डाला और उसका बख्तर भूमि पर गिरा दिया। इससे अंगशेष (दुर्योधन के पास केवल अपना शरीर ही रहा ऐसा) दुर्योधन बहुत ही लज्जित हुआ और उछल कर शकुनि के रथ पर जा बैठा। इसके बाद अर्जुन ने कासि प्रभृति दस राजाओं पर बाणवृष्टि कर उन्हें भी उसी तरह व्याकुल बना दिया, जिस तरह ओले की मार से हाथी व्याकुल हो उठता है।
उधर राजा शल्य ने एक बाण से राजा युधिष्ठिर के रथ की पताका छेद डाली। इस पर युधिष्ठिर ने शर सहित उसका धनुष छेद डाला। शल्य को इससे