________________
श्री नेमिनाथ-चरित * 321 यह देखकर शक्रन्तप राजा को बड़ा ही क्रोध आ गया उसने बडी देर तक महानेमि के साथ बाण युद्ध किया। परन्तु इस युद्ध का जब कोई फल न हुआ, तब उसे और भी क्रोध आया और उसने महानेमि पर एक महा भयंकर शक्ति छोड़ दी। उस शक्ति को देखकर समस्त यादव चिन्तित हो उठे, क्योंकि उस शक्ति के अधीन विविध शस्त्रधारी और अत्यन्त क्रूरकर्मी हजारों किंकर थे, जो प्रकट हो होकर नाना प्रकार का उत्पात मचा रहे थे। उनको देखकर मातलि ने भगवान अरिष्टनेमि से कहा- "हे भगवन् ! जिस प्रकार प्राचीन काल में रावण को धरणेन्द्र के पास से अमोघ विजय शक्ति प्राप्त हुई थी, उसी प्रकार तप करने पर इस सजा को भी बलीन्द्र से यह शक्ति प्राप्त हुई है। इसलिए व्रज के सिवा
और किसी भी शस्त्र से यह शक्ति नहीं भेदी जा सकती। ____ मातलि का यह वचन सुनकर श्री अरिष्टनेमि ने मातलि को महानेमि के धनुष पर वज्र बाण चढ़ाने की आज्ञा दी और महानेमि ने उसी बाण को छोड़कर तत्काल उस शक्ति को काट डाला। इसके बाद उन्होंने राजा शक्रन्तप को शस्त्र
और स्थ रहित बनाकर, उसके समस्त संगियों के भी धनुष काट डाले। इतने समय में रुक्मि सावधान हो गया और दूसरे रथ पर सवार हो पुनः युद्ध करने के लिए महानेमि के सामने आ पहुँचा। इस बार रुक्मि तथा शक्रन्तप आदि आठ राजाओं ने साथ मिलकर महानेमि से युद्ध आरम्भ किया। रुक्मि जिस जिस धनुष को उठाता, उसी को महानेमि छेद डालते। इस प्रकार रुक्मि के क्रमश: इक्कीस धनुष उन्होंने काट डाले। इससे उसने क्रुद्ध होकर उन पर कौबेरी नामक
गदा का वार किया, किन्तु महानेमि कुमार ने उसे आग्नेय बाण से भस्म कर '. 'डाला। इससे. रुक्मि और भी कुढ़ उठा। इस बार उसने मेघ की भांति लाखों बाणों की वृष्टि करने वाला वैरोचन बाण छोड़ा, किन्तु महानेमि ने माहेन्द्र बाण से उसे भी रोक दिया। इसके बाद उन्होंने एक दूसरा बाण छोड़ा, जिससे रुक्मि
के ललाट में गहरा जख्म हो गया और वह शिर पकड़कर वहीं बैठ गया। . उसकी यह अवस्था देखकर वेणुदारी उसे तुरन्त शिविर में उठा ले गया।
इसके बाद विविध शस्त्रों की वर्षा कर महानेमि ने उन सात राजाओं को भी परेशान कर डाला। समुद्रविजय ने राजा द्रुम को, स्तिमित ने भद्रराज को और अक्षोभ्य ने वसुसेन को यमपुरी भेज दिया। सागर ने पुरिमित्र को, हिमवान