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320 * जरासन्ध और शिशुपाल वध अनेक शंख और रणवाद्य बज उठे। उन सभी की आवाज से शत्रु सेना में बड़ी खलबली मच गयी और समस्त सैनिक जलचरों की भांति क्षुब्ध हो उठे। .
इसके बाद शीघ्र ही महानेमि, अनाधृष्टि और अर्जुन इन तीनों सेनापतियों . ने प्रलयकाल के समुद्र की भांति शत्रुसेना को घेर लिया। शत्रुओं के लिए उनका भुजबल सहन करना अत्यन्त कठिन था, इसलिए वे भय से व्याकुल हो उठे। देखते ही देखते उन तीनों महारथियों ने तीन स्थान से उस चक्रव्यूह को तोड़ डाला। जिस प्रकार जंगल में मदोन्मत्त हाथी सरिता तट को छिन्न भिन्न कर डालते हैं और जिस प्रकार नदी की धारा स्वयं अपने लिये मार्ग बना लेती है, उसी प्रकार वह तीनों शत्रुओं के व्यूह को छिन्न भिन्न कर, अपना रास्ता बनाते. हुए चक्रव्यूह में घुस पड़े। उनके बाद और भी अनेक सेनिकों ने उनका अनुसरण : किया। शत्रु सेना में इससे खलबली मच गयी ओर सैनिक गण युद्ध भूमि से भागने की तैयारी करने लगे। ____ अपनी सेना को विचलित होते देखकर दुर्योधन, रुक्मि और रुधिरराजा के पुत्र ने उन तीनों से लोहा लेने की तैयारी की। अनेक महारथियों से घिरे हुए दुर्योधन ने अर्जुन को, रुधिर पुत्र ने अनाधृष्टि को और रुक्मि ने महानेमि को रोका। इससे उन छ: ओं में द्वन्द्व युद्ध आरम्भ हो गया। उनकी सेना में भी इसी तरह परस्पर घोर युद्ध होने लगा। राजा रुक्मि अपने को बड़ा ही वीर मानता था
और अभिमानपूर्वक महानेमि को युद्ध के लिये ललकार रहा था। यह देख, महानेमि को उस पर क्रोध आ गया और उन्होंने उसी समय बाण वर्षाकर उसे पराजित कर दिया। ___ अब रुक्मि को मालूम हुआ कि महानेमि के सामने ठहरना सहज काम नहीं है। उन्होंने उसके दांत खट्टे कर दिये थे। यदि कुछ देर और वह उनके सामने खड़ा रहता, तो शायद उसकी जीवन लीला वहीं समाप्त हो जाती, परन्तु इतने ही में उसकी दुर्दशा देखकर शक्रन्तप आदि सात राजा उसकी सहायता के लिए वहां दौड़ आये महानेमि इससे जरा भी विचलित न हुए। वे और भी मुस्तेदी से उनसे युद्ध करने लगे। थोड़ी ही देर में उन्होंने उनके समस्त शस्त्र कमलनाल की भांति तोड़ फोड़ डाले।