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श्री नेमिनाथ-चरित * 319 यह छ: राजन साठ रथों के साथ नियुक्त किये गये। उनके पीछे पर्वत के समान धीर राजा शाम्बन नियुक्त किये गये। उनके बाद में भानु, भामर, भीरुक, असित, संजय, भानुक, धृष्णु, कंपित, गौतम, शत्रुञ्जय, महासेन, गंभीर, बृहद्ध्वज, वसुवर्मा, कृतवर्मा, उदय, प्रसेनजित्, दृढ़ वर्मा, विक्रान्त और चन्द्रवर्म आदि रक्खे गये। गरुड़व्यूह की यह सब रचना कृष्ण के आदेशानुसार उन्हींकी निगरानी से पूर्ण की गयी।
उधर सौधर्मेन्द्र को जब यह मालूम हुआ, कि बन्धु प्रेम के कारण श्री अरिष्टनेमि भी इस युद्ध में भाग लेने जा रहे हैं, तब उन्होंने मातलि नामक सारथी के साथ शस्त्रों से भरा हुआ अपना रथ उनके पास भेज दिया। वह स्थ सूर्य के समान प्रकाशवान, नाना रत्नों से सुशोभित और परम तेजस्वी था। श्री अरिष्टनेमि प्रभु मातलि की प्रार्थना स्वीकारकर, सहर्ष उस पर सवार हो गये। इसके बाद राजा समुद्रविजय ने कृष्ण के ज्येष्ठ पुत्र अनाधृष्टि को इस व्यूह का सेनापति नियुक्त किया। इस अवसर पर यादवों की सेना में गगनभेदी जय जयकार ध्वनि हुई, जिसे सुनकर जरासन्ध की सेना क्षुब्ध हो उठी। ___ दूसरे दिन सुबह, युद्ध की तैय्यारी पूर्ण होते ही दोनों ओर से युद्ध आरम्भ हो गया। दोनों दलों के सुभट धीरे धीरे अपने स्थान से आगे बढ़ने लगे। इसके बाद.ज्योंही एक दल से दूसरे दल की भेंट हुई, त्योंही उनमें मारकाट मच गयी। तरह तरह के शस्त्र उछलने लगे, दोनों दल एक दूसरे के व्यूह में घूसने की जी जान से चेष्टा करने लगे। परन्तु वे इस प्रकार दुर्भेद्य थे, कि किसी की चेष्टा सफल न हो सकी। - कुछ देर तक इसी प्रकार युद्ध होता रहा, परन्तु कुछ देर के बाद जरासन्ध
के सैनिकों ने कृष्ण के सैनिकों की अगली पंक्ति भंग कर दी। यह देखकर कृष्ण ने अपने पताका युक्त हाथ को ऊंचा उठा दिया। यह संकेत पाते ही वह सैनिक, जिनके पैर उखड़ गये थे अपने अपने स्थान पर हिमालय की भांति अचल होकर
खड़े हो गये। इधर अपनी पंक्ति को भंग होते देख, महानेमि, अर्जुन अनाधृष्टि .. तीनों जने अत्यन्त क्रूद्ध हो उठे। उन्होंने अपनी अपनी सेना को सजग कर उसी
समय अपने अपने शंख फूंक दिये। महानेमि ने सिंहनाद नामक, अनाधृष्टि ने बलाहक नामक और अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाया। इसी समय और भी
हा सका।