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318 जरासन्ध और शिशुपाल वध
बायी और मध्यदेश के राजा और आगे की और कई सेनापति नियुक्त किये गये । चक्रव्यूह के मुखपर शकटव्यूह की रचनाकार चक्रनाभिकी सन्धियों पर पचास राजा और बीच बीच मे चतुर्विध सेना खड़ी हो गयी । शेष सेनापति और बलवान राजागण चक्रव्यूह बनाकर खड़े हो गये । यह सब व्यवस्था पूर्ण होने पर राजा जरासन्ध ने कोशलाधिपति राजा हिरण्यनाभ को इस चक्रव्यूह का सेनापति बनाया। इतने ही में शाम हो गयी, इसलिए शेष कार्य दूसरे दिन पर छोड़कर सब लोग शिविर में लौट आये।
यादवों को जब मालूम हुआ कि जरासन्ध ने चक्रव्यूह की रचना की है, तब उन्होंने उसी के सामने दुर्भेद्य गरुड़व्यूह की रचना की । इस व्यूह के मुखपर महा तेजस्वी अर्धकोटि कुमार नियुक्त किये गये। सबके सामने का मोर्चा बलराम और कृष्ण ने अपने अधिकार में रक्खा । वसुदेव के अक्रूर, क्रमुद, पद्य, सारण, विजयी, जय, जरत्कुमार, सुमुख, दृढमुष्टि, विदूरथ, अनाधृष्टि, दुर्मुख, और सुमुख नामक पुत्र एक लाख रथों के साथ कृष्ण के अंगरक्षक नियुक्त हुए ।
उनके पीछे कोटि रथ सहित राजा उग्रसेन खड़े किये गये और उनके अंग रक्षक का काम उनके चार पुत्रों को दिया गया। इन सबके पीछे धर, सारण, चन्द्र, दुर्धर और सत्यक नामक पांच राजा नियुक्त किये गये, जिनका काम अपने आगे के वीरों की रक्षा करना था ।
दाहिनी और का स्थान राजा समुद्रविजय ने अपने भाई और पुत्रों के साथ अपने अधिकार में रक्खा, महानेमि, सत्यनेमि, दृढ़नेमि सुनेमि, अरिष्टनेमि, विजयसेन, मेघ, महीजय, तेजसेन, जयसेन, जय और महाद्युति आदि कुमार तथा पचीस लाख रथ राजा समुद्रविजय के अगल बगल में नियुक्त किये गये । बायी और बलराम के पुत्र तथा महायोद्धा युधिष्ठिर आदि पाण्डवों की नियुक्ति की गयी। उनके पीछे पचीस लाख रथों के साथ उल्मूक, निषध, शत्रुदमन, प्रकृतिद्युति, सात्यकि, श्रीध्वज, देवानन्द, आनन्द, शान्तनु, शतधन्वा, दशरथ, ध्रुव, पृथु, विपृथु, महाधनु, दृढ़ धन्वा, अतिवीर और देवनन्दन आदि योद्धा नियुक्त किये गये। यह सब बड़े ही बलवान थे और कौरवों का वध करने के लिये भी अत्यन्त उत्सुक रहते थे।
इन सबके पीछे चन्द्रयशा, सिंहल, बर्बर, काम्बोज, केरल और द्रविड़