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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 317 मन्त्री की यह बातें सुनकर जरासन्ध क्रूद्ध हो उठा। वह कहने लगा"हे दुराशय! मालूम होता है कि कपटी यादवों ने तुझे फोड़कर अपने हाथ में कर लिया है। इसीलिए तूं उनके बल की प्रशंसा कर मुझे डराता है। परन्तु यह सब व्यर्थ है। हे कायर! श्रृगालों की आवाज सुनकर सिंह कभी डर सकता है ? हे दुर्मते! यदि तुझ में युद्ध करने का साहस न हो, तो तूं युद्ध से दूर रह सकता है, किन्तु ऐसी बातें कहकर दूसरों को युद्ध से दूर रखने की चेष्टा क्यों करता है ? मैं तो अकेला ही इनके लिए काफी हूँ।" ____ जरासन्ध के यह वचन सुनकर बेचारा हंसक मन्त्री चुप हो गया। किन्तु डिम्भक नामक खुशामदी मन्त्री ने कहा-“हे राजन् ! आपका कहना यथार्थ है। हम लोगों को इस युद्ध से कदापि मुख न मोड़ना चाहिए। युद्ध से विमुख होने की अपेक्षा संग्राम में मर जाना भी अच्छा है, क्योंकि उसमें यश मिलता है। क्षत्रियों के लिए तो युद्ध से बढ़कर दूसरी प्रिय वस्तु और हो ही नहीं सकती। इसलिए हे राजन् ! हम लोगों को निरुत्साह न होकर अब व्यूह रचना में तत्पर होना चाहिए। मेरी समझ में चक्रव्यूह हम लोगों के लिए परम उपयुक्त होगा। इससे हम लोग आसानी से शत्रुसंहार कर सकेंगे।” । . डिम्भक की यह बातें जरासन्ध को अत्यन्त प्रिय मालूम हुई। उसने कहा- "हां, तुमने समयोचित बातें कहीं हैं मैं तुम्हारे विचारों को पसन्द करता . हूँ। कलं हम लोग चक्रव्यूह की रचना कर, लड़ाई की सब तैयारियां पूरी कर ... . लेंगे।" . दूसरे दिन सूर्योदय होते ही जरासन्ध से प्रधान सेनापति को चक्र व्यूह सजाने की आज्ञा दे दी। तदनुसार शीघ्र ही सेनापति ने समस्त सेना और उसके संचालकों को चक्र व्यूह के रूप में सजाना आरम्भ किया। समस्त चक्र में एक हजार नोंके निकाली गयी और उस प्रत्येक नोक पर एक एक राजा की अधीनता में सौ हाथी, दो हजार रथ, पांच हजार घोड़े और सोलह हजार पैदल-इतनी सेना नियुक्त हो गयी। चक्र के मध्यभाग में पांच हजार राजाओं के साथ स्वयं मगधाधिप जरासन्ध जा बैठा और उसकी रक्षा के लिए उसके चारों और सवा छ हजार राजा अपनी अपनी सेना के साथ नियुक्त किये गये। जरासन्ध के पीछे गन्धार और सोधव राजा की सेना नियुक्त की गयी। दाहिनी और सौ कौरव,
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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