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________________ 316 * जरासन्ध और शिशुपाल वध तो उसके बलराम और कृष्ण जैसे दो बलवान पुत्र भी हो गये हैं। उन दोनों ने इतनी उन्नति की है, कि स्वयं कुबेर ने उनके लिये द्वारिका नगरी बना दी है। वे दोनों महाशूरवीर है। महारथी पांच पाण्डवों ने भी संकट में उनकी शरण स्वीकार की है। कृष्ण के प्रद्युम्न और शाम्ब नामक दो पुत्र भी अपने पिता और पितामह की ही भांति बड़े पराक्रमी है। भीम और अर्जुन अपने बाहुबल से यम को भी नीचा दिखा सकते हैं इन सभी को जाने दीजिए केवल अरिष्टनेमि ही ऐसे हैं जो अपने भुज दण्ड से क्षणमात्र में समस्त पृथ्वी को अपने अधिकार में कर सकते हैं। साधारण योद्धाओं की तो गणना भी नहीं की जा सकती। . .. ___ हे मगधेश्वर! अब आप अपनी शक्ति पर विचार कीजिए। आपकी सेना में शिशुपाल और रुक्मि अग्रगण्य है, परन्तु उनका बल तो रुक्मिणी हरण के समय बलराम के युद्ध में देखा ही जा चुका है। कुरुवंशी दुर्योधन और गन्धार देश के शकुनि राजा, छल और प्रपञ्च में जितने चढ़े बढ़े हैं, उतने बल में नहीं सच पूछिये तो वीर पुरुषों में इनकी गणना ही न होनी चाहिए। अंग देश के राजा कर्ण अवश्य ही एक अच्छे योद्धा हैं, परन्तु कृष्ण के लाखों महारथी और सुभटों को देखते हुए वे भी किसी हिसाब में नहीं हैं। यादव सेना में बलराम, कृष्ण और अरिष्टनेमि-यह तीनों एक समान बली है, किन्तु इधर आपके सिंवा इनके जोड़ का और कोई नहीं है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि उनकी और हमारी सेना में बहुत अधिक अन्तर है। समुद्रविजय के पुत्र श्री अरिष्टनेमि, जिसे अच्युतादिक इन्द्र भी नमस्कार करते हैं, उससे युद्ध करने का साहस भी कौन कर सकता है? ___ इसके अतिरिक्त हे राजन् ! यह तो. आप देख ही चुके हैं कि कृष्ण के अधिष्ठायक देवता आपके प्रतिकूल हैं और उन्होंने छलपूर्वक आपके पुत्र कालकुमार का प्राण लिया है। दूसरी और मैं यह देखता हूं कि यादव लोग बलवान होने पर भी न्यायानुकूल आचरण करते हैं। यदि ऐसी बात न होती तो वे मथुरा से द्वारिका में क्यों भाग जाते? अब जब आपने उन्हें युद्ध करने के लिए बाध्य किया है, तब वे अपनी सारी शक्ति संचय कर आपके सामने उठकर आये हैं। उनका वास्तविक उद्देश्य आपसे युद्ध करना नहीं, अपनी रक्षा करना है। मेरी धारणा है कि यदि आप अब भी युद्ध का विचार छोड़ दें, तो ये सब लोग द्वारिका वापस चले जायेंगे। मेरी समझ में, इससे दोनों दलों को लाभ हो सकता हैं।"
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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