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श्री नेमिनाथ-चरित * 313 तरह अपने अनेक पुत्रों के साथ शत्रु सेना से लोहा लेने के लिए उपस्थित हुए। उनके पुत्रों के नाम इस प्रकार थे—विजयसेना के अक्रूर और क्रूर। श्यामा के ज्वलन और अशनिवेग। गन्धर्वसेना के वायुवेग, अमितगति और महेन्द्रगति। मन्त्रीसुता पद्मावती के सिद्धार्थ, दारुक और सुदारु। नीलयशा के सिंह और मतंगज। सोमयशा के नारद और मरुदेव। मित्रश्री का सुमित्र, कपिला का कपिल, पद्मावती के पद्य और कुमुद, अश्वसेना का अश्वसेन, पुंड्रा का पुंड्र, रत्नावती के रत्नगर्भ और वज्रबाहु, सोमराज की पुत्री सोमश्री के चन्द्रकान्त और शशिप्रभ, वेगवती के वेगमान और वायुवेग, मदनवेगा के अनाधृष्टि, दृढ़मुष्टि
और हिममुष्टि, बन्धुमती के बन्धुषेण और सिंहसेन, प्रियंगुसुन्दरी का शिलायुध, प्रभावती के गन्धार और पिङ्गल जरारानी के जरत्कुमार ओर वाहलीक, अवन्तिदेवी के सुमुख.ओर दुर्मुख, रोहिणी के बलराम, सारण और विदूरथ, बालचन्द्रा के वज्रदंष्ट्र और अमितप्रभ यह सभी बड़े ही बलवान और पूरे लड़ाकू थे।
बलराम के साथ बलराम के अनेक पुत्र भी आये थे, जिसमें से उल्मूक, निषध, प्रकृति, द्युति, चारुदत्त, ध्रुव, शत्रुदमन, पीठ, श्रीध्वज, नन्द, श्रीमान्, - दशरथ, देवानन्द, आनन्द, विप्रथु, शान्तनु, पृथु, शतधनु, नरदेव, महाधुन
और दृढ़धन्वा मुख्य थे। .. इसी प्रकार कृष्ण के भी अनेकानेक पुत्र वहां उपस्थित थे, जिनकी संख्या . .एक हजार से भी अधिक थी। उनमें भानु, भामर, महाभानु, अनुभानु,
बृहद्ध्वज, अग्निशिख, कृष्ण, संजय, अकंपन, महासेन, धीर, गंभीर उदधि, गौतम, वसुधर्मा, प्रसेनजित्, सूर्य चन्द्रवर्मा, चारुकृष्ण, सुचारु, देवदत्त, भारत शंख, प्रद्युम्न और शाम्ब आदि मुख्य थे।
राजा उग्रसेन भी बड़े उत्साह के साथ इस युद्ध में भाग लेने को उपस्थित हुए और अपने साथ अपने धर, गुणधर, शक्तिक दुर्धर, चन्द्र और सागर इन - छ: पुत्रों को भी लेते आये। इनके अतिरिक्त ज्येष्ठ राजा के काका शाम्बन और उनके महासेन, विषमित्र, अजमित्र तथा दानमित्र नामक चार पुत्र, महासेन का पुत्र सुषेण, विषमित्र के हृदिक, सिनि और सत्यक, हृदिक के कृतवर्मा और दृढ़वर्मा, सत्यक के युयुधान और युयुधान का गन्ध नामक पुत्र भी उपस्थित