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श्री नेमिनाथ-चरित * 23
गयी और वह सातवीं नरक में पड़ कर अपना कर्म-फल भोगने लगा। .. उधर सुमित्र की मृत्यु जानकर चित्रगति को बहुत ही दुःख हुआ। उसने
अपने अशान्त हृदय को शान्त करने के लिए सिद्धायतन की वन्दना करने का विचार किया और वह सदलबल शीघ्र ही वहाँ जा पहुंचा। उस समय वहाँ
और भी अनेक विद्याधर एकत्र थे। राजा अनंगसिंह भी रत्नवती को साथ लेकर उस महान तीर्थ की वन्दना करने आया था। चित्रगति ने अत्यन्त भक्ति के साथ विविध प्रकार से शाश्वत अरिहन्त की पूजा की। अवधि-ज्ञान से यह सब वृत्तान्त सुमित्रदेव को भी ज्ञात हुआ। इसलिए उसने अन्य देवताओं के साथ वहाँ आकर चित्रगति पर आकाश से पुष्प-वृष्टि की। चित्रगति की यह महिमा देखकर विद्याधरों को बहुत आनन्द हुआ और राजा अनंगसिंह को भी मालूम हो गया कि यही रत्नवती का भावी पति है। ____ सुमित्र देव ने इस अवसर पर अपने प्रिय मित्र को अपना परिचय दे देना उचित समझा, इसलिए उसने प्रत्यक्ष होकर चित्रगति से पूछा-“हे चित्रगति ! क्या तुम मुझे पहचानते हो?"
चित्रगति ने कहा-“हाँ, मैं आपके विषय में इतना अवश्य जानता हूँ कि आप एक महान देव हैं।" . चित्रगति का यह उत्तर सुनकर सुमित्र देव को हंसी आ गयी, उसने अपना वास्तविक परिचय देने के लिए सुमित्र का रूप धारण किया, उसका यह रूप देखते ही चित्रगति उसे पहचान गया और दौड़कर उसे हृदय से लगा लिया। साथ ही उसने कहा-“हे मित्र! मैं आपको कैसे भूल सकता हूँ? आप ही के प्रसाद से तो मुझे धर्म की प्राप्ति हुई है।"
सुमित्र ने भी विवेक दिखलाते हुए कहा-“हे चित्रगति! आपने मुझ पर जो उपकार किया है, उसके सामने यह सब किसी हिसाब से नहीं। यदि आपने मुझे जीवन-दान दिया न होता, तो मुझे धर्मप्राप्ति का अवसर ही न मिलता।
उस अवस्था में यह देवत्व तो दूर था, मैं प्रत्याख्यान और नमस्कार रहित . मनुष्यत्व से भी वञ्चित रह जाता।"
- इस प्रकार वे दोनों मुक्त कण्ठ से एक दूसरे की प्रशंसा कर रहे थे। उनके इस अपूर्व मिलन का दृश्य वास्तव में दर्शनीय था। वहाँ चक्रवर्ती सूर आदिक