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22 तीसरा और चौथा भव
दु:ख हल्का हो गया और वह एक बार चित्रगति से मिलने के लिए उत्कंठित हो उठा। परन्तु अब उसका पता पाना सहज न था । राजा इससे निराश हो गया। परन्तु इतने ही में उसे उस ज्योतिषी की दूसरी बात स्मरण आ गयी । उसने यह भी कहा था कि, “सिद्धायतन को वन्दन करते समय उस पर पुष्पवृष्टि होगी।” यही एक ऐसी बात थी, जिससे उसका पता लग सकता था। वह इसी बात पर विचार करता हुआ अपने राज-महल को लौट आया।
उधर चित्रगति ने सुमित्र की बहिन को ले जाकर सुमित्र को सौंप दिया । इससे उसे बहुत ही आनन्द हुआ। उसने चित्रगति की प्रशंसा कर उसे धन्यवाद दिया। इसके बाद चित्रगति उससे विदा ग्रहण कर अपने नगर को लौट गया।
सुमित्र के हृदय में वैराग्य के बीज ने तो पहले ही जड़ जमा ली थी। इधर उसकी बहिन का हरण होने पर कामदेव का विषम रूप उसकी आँखों के सामने आ गया। वैराग्य की प्रबलता के कारण उसने अपने पुत्र को राज्य - भार सौंप कर सुयशा केवली के निकट जाकर दीक्षा ले ली।
दीक्षा ग्रहण करने के बाद पहले बहुत दिनों तक सुमित्र अपने गुरुदेव के निकट शास्त्राभ्यास करता रहा। इसके बाद उनकी आज्ञा प्राप्त कर वह सर्वत्र अकेला विचरण करने लगा। कुछ दिनों के बाद विचरण करता हुआ वह मगध देश में जा पहुँचा वहाँ एक नगर के बाहर उसने कार्योत्सर्ग करना आरम्भ किया। इसी समय उसका सौतेला भाई पद्म कहीं से घूमता - घामता हुआ वहाँ आ पहुँचा। उसकी दृष्टि सुमित्र पर जा पड़ी। वह ध्यानावस्था में पर्वत की भाँति स्थिर बैठा था। उसे देखते ही उसकी प्रतिहिंसा - वृत्ति जागृत हो उठी। उसने कान तक धनुष खींचकर इतने जोर से एक बाण मारा कि सुमित्र मुनि का हृदय छिन्न-भिन्न हो गया। वे अपने मन में कहने लगे- "यह बेचारा अपने आत्मा को नरक में डालकर मुझे स्वर्ग भेज रहा है। इसलिए इससे बढ़कर मेरा हितैषी कौन हो सकता है ? मैंने इसकी इच्छानुसार इसे राज्य न दिया था, इसीलिए यह मुझसे असन्तुष्ट हो गया था, मुझे विश्वास है कि अब वह इसके लिए मुझे क्षमा कर देगा ।" इस प्रकार धर्म - ध्यान करते हुए नमस्कार मन्त्र का स्मरण कर सुमित्र मुनि काल के विकराल गाल में प्रवेश कर गये । मृत्यु के बाद वे देवलोक में सामानिक देव हुए। पद्म उन्हें बाण मारकर ज्योंही वहाँ से भागने लगा, त्योंही उसे एक सर्प ने डस लिया । इससे तुरन्त उसकी मृत्यु हो