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श्री नेमिनाथ-चरित * 21 ओर लपक कर शत्रु-सेना को झुलसाये देती थी। उस देवी खड्ग के सामने ठहरना तो दूर रहा, उसकी ओर आँख उठाकर देखना भी कठिन था। वह खड्ग हाथ में आते ही अनंगसिंह ने चित्रगति को ललकार कर कहा-"हे बालक! यदि तुझे अपने प्राणों का जरा भी मोह हो, तो इसी समय यहाँ से भाग जा, वर्ना मैं तेरा सिर धड़ से अलग कर दूंगा।"
चित्रगति ने उपेक्षा पूर्ण हास्य करते हुए कहा-“हे मूढ़ ! एक लौह का टुकड़ा हाथ में आ जाने से तुझे इतना गर्व हो गया कि तूं अपने उस प्रतिस्पर्धी को रण में भाम जाने को कहता है, जो तुझे घंटों से हँफा रहा है ! इस शस्त्र के बूते पर लड़ना कोई वीरता नहीं है। यदि तेरी भुजाओं में बल हो, तो इसे दूर रख दे और जितनी देर इच्छा हो, मुझ से आकर लड़ ले।" __ चित्रगति के यह वचन सुनकर राजा अनंगसिंह क्रोध से कूदते हुए सर्प की भाँति झल्ला उठा। उसने चित्रगति पर उस दिव्य खड्ग से वार करने की तैयारी की, परन्तु चित्रगति भी असावधान था। उसने अपनी विद्या के बल से चारों ओर अन्धकार फैला कर दिन की रात बना दी। जिस प्रकार श्रावण की अंधेरी घटा में कुछ सूझ नहीं पड़ता, उसी प्रकार अन्धकार के कारण सब लोग किंक-व्यविमूढ़ बन गये। उन्हें अपने पास खड़े हुए मनुष्य भी आँखों से . दिखायी न देते थे। चित्रगति ने जानबूझकर यह माया जाल फैलाया था।
अन्धकार होते ही वह लपक कर राजा अनंगसिंह के पास पहुँचा और उसके हाथ से वह दैवी खड्ग छीन लिया। इसके बाद वह उस स्थान में गया जहाँ सुमित्र की बहिन रखी गयी थी। वह उसे एक घोड़े पर बैठाकर अपने साथ ले आया और उसी क्षण अपनी सेना के साथ वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गया।
उसके चले जाने पर उसकी इच्छा से वह अन्धकार दूर हो गया। अन्धकार दूर होने पर राजा ने देखा कि उसका वह दैवी खड्ग गायब है। न कहीं उसके शत्रु का पता है, न कहीं उसकी सेना का। इसी समय उसे समाचार मिला कि सुमित्र की वह बहिन भी गायब है, जिसे कमल हरण कर लाया था। अपनी इस पराजय से वह बहुत लज्जित हुआ। वह दैवी खड्ग हाथ से निकल जाने के कारण भी उसे कम दु:ख न था, परन्तु इतने ही में उस ज्योतिषी की बात याद आ गयी। उसने कहा था कि जो आपके हाथ से आपका खड्ग छीन लेगा, उसी से आपकी कन्या का विवाह होगा। इस बात के स्मरण से उसका