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सोहलवाँ परिच्छेद जरासन्ध और शिशुपाल वध
१७.३८
लेकर
कुछ दिनों के बाद यवन द्वीप से जलमार्ग द्वारा बहुतसा बहुमूल्य किंसना कुछ वणिक लोग द्वारिका नगरी आये। वहां पर उन्होंने और सब चीजें तो बेच डाली, परन्तु बहुमूल्य रत्न कम्बलों का कोई अच्छा ग्राहक उन्हें वहां न मिल सका। इसलिए विशेष लाभ की आशा से वे राजगृह नगर गये। वहां के प्रसिद्ध व्यापारी उन्हें राजेन्द्र जरासन्ध की पुत्री जीवयंशा के पास ले गये । उन्होंने उसे वह कम्बल दिखाये जो छूने से बहुत ही कोमल प्रतीत होते थे । जीवयशा ने उनको देखकर, उनकी जो कीमत लगायी वह उनकी लागत से भी आधी थी। यह देखकर वणिक लोग कहने लगे कि - " हे देवि ! हमलोग तो विशेष, लाभ की इच्छा से द्वारिका छोड़कर यहां आये थे, किन्तु यहां तो हमें वह मूल्य भी नहीं मिल रहा है जो द्वारिका में मिलता था । "
जीवयशा ने आश्चर्य पूर्वक पूछा - " द्वारिकानगरी कहां है और वहां पर . कौन राज्य करता है । "
वणिकों ने कहा—“भारत के पश्चिम तटपर समुद्र के देवताओं ने एक नयी नगरी निर्माण की है । उसीको लोग द्वारिका कहते हैं। वहां देवकी और वसुदेव के पुत्र कृष्ण राज्य करते हैं । "
कृष्ण का नाम सुनते ही जीवयशा मानो महान शोकसागर में जा पड़ी। उसकी आँखों में आंसू भर आये। वह कहने लगी- मेरे पतिदेव को मारनेवाला अब तक इस संसार में जीवित है और राज्य कर रहा है। मेरे लिये इससे बढ़कर दुःख का विषय और क्या हो सकता है।"