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________________ 308 * शाम्ब-चरित्र सत्यभामा का ध्यान उनके कथन की ओर आकर्षित न हो सका। इसके बाद जब विवाह का समय उपस्थित हुआ, तब पहले की शर्त के अनुसार भीरु के दाहिने हाथ पर शाम्ब का बांया हाथ रक्खा गया। शाम्ब ने. इसी समय एक और चालाकी की। वह अपने दाहिने हाथ से एक ही समय निन्नानवें कन्याओं के हाथ पकड़कर, उनके साथ भांवर (फेरे) फिरने लगा। शाम्ब को देखकर उन्हें अत्यन्त आनन्द हुआ। ऐसा सुन्दर पति प्राप्त करने के कारण वे मन ही मन अपने भाग्य की सराहना करने लगी। ........ वैवाहिक विधि पूर्ण होने पर शाम्ब ने उन स्त्रियों के साथ शयनगृह में प्रवेश किया। साथ ही भीरु ने भी वहां पदार्पण किया, किन्तु शाम्ब ने उसे . आंखें दिखाकर वहां से भगा दिया। भीरु ने सत्यभामा के पास जाकर इसकी. शिकायत की सत्यभामा को उसकी बातों पर विश्वास ही न हुआ। उसने कहा ' कि शाम्ब यहां कहां है? तुझे किसी प्रकार का भ्रम हुआ होगा। परन्तु उसने जब फिर वही बातें कहीं, तब वह स्वयं उसे देखने गयी। शाम्बकुमार को ' देखते ही उसके बदन में मानों आग लग गयी। उसने गाजकर कहां-“हे धृष्ट ! तुझे यहांपर कौन लाया है? शाम्ब ने उत्तर दिया- "हे माता! आप ही मुझे यहां लायी है और आप ही ने इन कन्याओं का पाणिग्रहण कराया है। समस्त नगर निवासी इसके साक्षी हैं।" शाम्ब की यह बातें सुनकर सत्यभामा चक्कर में पड़ गयी। उसने आस पास के लोगों से इस सम्बन्ध में पूछताछ की, तो उन्होंने भी शाम्ब का ही समर्थन करते हुए कहा-“हे देवि! तुम व्यर्थ ही क्रोध क्यों करती हो। शाम्ब की बातें बिलकुल सत्य हैं। तुम्हींने सबके सामने उन कन्याओं से उसका ब्याह कराया है।" सत्यभामा को इससे बड़ा ही क्रोध आया। वह इस कपट व्यवहार के लिए शाम्ब की भर्त्सना करती हुई अपने महल चली गयी। इधर शाम्ब की यह बुद्धिमत्ता देखकर जाम्बवती को बड़ा ही आनन्द हुआ और उसने उसके विवाहोपलक्ष में एक महोत्सव मनाया, जिसमें कृष्ण ने भी समुचित भाग लिया।
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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