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श्री नेमिनाथ - चरित 307
इतना कह प्रद्युम्न उसी समय श्मशान चला गया। घूमता घामता शाम्बकुमार भी वहीं उनसे आ मिला। दोनों ने वहां भी आमदनी का एक 'जरिया निकाल दिया। अब वे गहरा (अधिक) कर वसूल किये बिना किसी को वहां पर मुर्दे जलाने न देते। इसमें आवश्यकतानुसार वे बलप्रयोग भी करते। इससे उन्हें खासी आमदनी होने लगी और इसीसे उनका निर्वाह होने
लगा ।
इधर सत्यभामा ने भीरु का विवाह करने के लिए निन्नानवे सुन्दर कन्याएं एकत्र की। उसकी इच्छा थी कि अब एक कन्या और मिल जाय, तो उनकी संख्या पूरी सौ हो जाय।
इधर प्रद्युम्न को प्रज्ञप्ति विद्या के कारण यह बात मालूम हो गयी, इसलिए, वह स्वयं मायावी जितशत्रु नामक राजा हुआ और शाम्बकुमार उसकी कन्या बना ।
एक दिन भीरु की धात्री ने उस कन्या को अपनी सखियों के साथ खेलते देख लिया। उसे वह बुलन्द पसन्द आ गयी, इसलिए उसने सत्यभामा से कहा। सत्यभामा ने उसी समय जित शत्रु के पास आदमी भेजकर भीरु के लिए उसकी याचना की। इसपर जितशत्रु ने कहा – “यदि सत्यभामा मेरी कन्या का हाथ पकड़कर द्वारिका में प्रवेश करे, साथ ही विवाह के समय, भीरु के हाथ में इसका हाथ दे, फेरे के वक्त इसका हाथ ऊपर रक्खा जाय, तो मैं भीरु के साथ अपनी कन्या का विवाह कर सकता हूँ ।"
सत्यभामा को तो किसी तरह अपने दिल का हौंसला पूरा करना था, इसलिए उसने जितशत्रु की यह दोनों शर्तें स्वीकार कर ली । यथासमय वह उस कन्या को लेने के लिए राजा जितशत्रु की छावनी में गयी । उसे देखकर शाम्ब हाक - " सत्यभामा तथा उसके सम्बन्धी लोग मुझे कन्यारूप में देखें, और अन्य शाम्ब के रूप में देखें !” इस पर प्रज्ञप्ति विद्या ने वैसा ही किया। सत्यभामा ने शाम्ब का दाहिना हाथ पकड़कर, नगर प्रवेश किया। इसके बाद वह उसे उस स्थान में ले गयी, जहां समस्त कन्याओं के साथ भीरु का विवाह होने वाला था । सत्यभामा के हाथ में शाम्ब का हाथ देखकर नगर के स्त्री पुरुष “आश्चर्य ! आश्चर्य !!” पुकार उठे, परन्तु उस समय