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________________ 306 * शाम्ब-चरित्र ___ दूसरे दिन कृष्ण शाम्ब को बलपूर्वक जाम्बवती के पास पकड़कर लाने लगे तब वह उस समय काठ की एक किल बना रहा था। यह देख, कृष्ण ने उससे पूछा-“यह कील क्यों बना रहे हो? इस पर शाम्ब ने कहा कि"जो मनुष्य कल की बात आज कहेगा, उसके मुंह में यह कील ठोक दूंगा। इसलिए बना रहा हूँ।" ___ उसका यह मूर्खतापूर्ण उत्तर सुनकर कृष्ण को क्रोध आ गया। जाम्बवती के पास लाकर उन्होंने कहा—“तूं वास्तव में बड़ा ही शैतान है। एक तो नगर में नित्य ही कुकर्म करता है और दूसरी ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें कहता है ! जा, तू इसी समय नगर से बाहर निकल जा! तेरे समान पातकी को नगर में रखने से .. मेरी भी बदनामी होगी!" कृष्ण का वह आदेश शिरोधार्य करने के सिवाय शाम्ब के पास दूसरा उपाय न था, इसलिए वह नगर त्याग करने को तैयार हुआ, परन्तु प्रद्युम्न पूर्वजन्म का उसका भाई था। इसलिए वह, उससे बहुत ही प्यार करता था। जब वह नगर छोड़कर चलने लगा तब प्रद्युम्न ने उसे प्रज्ञप्ति-विद्या प्रदान करके कहा-“भाई! इस विद्या को सिद्ध कर लेने से तुम्हारा बड़ा ही उपकार होगा और तुम जहां भी रहोगे, सुखी रहोगे।" ____ शाम्ब के चले जाने पर प्रद्युम्न अकेले पड़ गये। भीरु से उनकी भी न पटती थी, इसलिए कभी कभी वे भी उसे मार बैठते थे। एक दिन उसे मारने पर सत्यभामा ने कहा-“प्रद्युम्न! तूं भी शाम्ब की तरह दुर्बुद्धि मालूम होता है। उसके चले जाने से नगरवासियों का आधा दु:ख दूर हो गया है। अब तू भी चला जाय तो सारा नगर सुखी हो जाय!" प्रद्युम्न ने कहा- “माता! मैं कहां चला जाऊं?" सत्यभामा ने कुढ़ कर कहा-“तूं श्मशान में चला जा, और प्रद्युम्न ने हँसकर पूछा- “माता! और मैं वहां से कब आऊंगा?" सत्यभामा ने कहा- "जब मैं शाम्ब को हाथ पकड़कर यहां ले आऊं तब आना।" प्रद्युम्न ने कहा-“अच्छा माता, मैं ऐसा ही करूंगा।" . .
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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