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श्री नेमिनाथ-चरित * 305 भीरु की यह द्युतप्रियता कृष्ण को अच्छी न मालूम हुई, इसलिए उन्होंने उसे इस तरह की बाजियां लगाने से मना किया। किन्तु भीरु कृष्ण की यह शिक्षा सुनी अनसुनी कर फिर शाम्ब के साथ बाजी लगाने गया, फलत: शाम्ब ने उसे पीटा। इससे भीरु रोता हुआ सत्यभामा के पास गया और सत्यभामा ने कृष्ण से इसकी शिकायत की। इस पर कृष्ण ने जाम्बवती से कहा-“शाम्ब बड़ा ही शरारती है, और जुआ खेलता रहता है।" यह सुनकर जाम्बवती कहने लगी कि- “अब तक शाम्ब की ऐसी शिकायत मैंने कभी न सुनी थी। आज आप ऐसा क्यों कहते हैं ?"
कृष्ण ने कहा- “सिंहिणी अपने पुत्र को सदा सरल और सौम्य ही मानती है, परन्तु उसकी क्रीड़ा को तो हाथी ही जानते हैं। देखो, आज मैं शाम्ब की कुछ लीला दिखाता हूँ।" . इतना कह कृष्ण ने ग्वाले का रूप धारण कर, जाम्बवती को एक ग्वालिन का रूप धारण कराया। इसके बाद उन दोनों ने गोरस बेचते हुए द्वारिका में प्रवेश किया। शाम्बकुमार ने उस ग्वालिन को देखते ही कहा— “हे ग्वालिन! तुम मेरे साथ चलो, मुझे गोरस खरीदना है।" इससे वह ग्वालिन 'शाम्ब के साथ हो गयी। वह ग्वाल भी उनके पीछे चला। शाम्ब ने कुछ दूर • जाने के बाद एक देवकुल में प्रवेश किया और उसी के अन्दर उस ग्वालिन को
भी बुलाया। किन्तु ग्वालिन ने अन्दर जाने से इन्कार करते हुए कहा“भाई! मैं वहां न आऊंगी, मेरे गोरस का मूल्य यहीं पर दे दो।" इसपर शाम्ब ने कहा कि-"तुझे भीतर आना ही पड़ेगा।” यह कहते हुए, वह उसका हाथ पकड़कर उसे अन्दर खींचने लगा। यह देखकर ग्वाल वहां दौड़ा आया। उसने शाम्ब की खूब मरम्मत की। अन्त में जब झगड़ा बहुत बढ़ गया तब कृष्ण और जाम्बवती ने अपना रूप प्रकट कर दिया। इस तरह अचानक
अपने माता पिता को देखकर शाम्ब लजित हो गया और मुँह छिपाकर जाने .. कहाँ भाग गया। ___शाम्ब की यह शरारत दिखाकर कृष्ण ने जाम्बवती से कहा-"प्यारी! अपने पुत्र का कार्य देखा? अब तुम्हें मेरी बातपर विश्वास हुआ?' जाम्बवती निरन्तर बन गयीं। उसने कृष्ण की इन बातों का कोई उत्तर न दिया।