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श्री नेमिनाथ-चरित * 303 सुनकर, हमारी समस्त प्रजा सागर की भांति उसी ओर चली जा रही है!" . यह संवाद सुनकर राजा रुक्मि को अत्यन्त आनन्द हुआ। वह समझ गया कि वैदर्भी चाण्डालों के नहीं, बल्कि यह कुल भूषण प्रद्युम्न और शाम्ब के ही हाथों में जा पड़ी है। हां, यह आश्चर्य घटना कैसे घटित हुई, वह चाण्डाल कौन थे, प्रद्युम्न आदि यहां कैसे आ पहँचे, नगर के बाहर प्रसाद कहां से आ गया, आदि बातें उस समय उसकी समझ में न आ सकी। उसने इनको समझने की चेष्टा भी न की। वह उसी समय राज सभा से उठकर, उस प्रसाद में गया और वहाँ से सम्मान पूर्वक प्रद्युम्न, शाम्ब तथा वैदर्भी को अपने राज मन्दिर मैं ले आया। वहां सभी की पूजा कर उसने जी खोलकर उनका आदर सत्कार किया। प्रद्युम्न आदि को भी इससे परम सन्तोष और आनन्द प्राप्त हुआ। - इसके बाद राजा रुक्मि से बिदा ग्रहण कर प्रद्युम्न और शाम्ब दोनों
वैदर्भी के साथ द्वारिका लौट आये। वैदर्भी को पुत्रवधू के रूप में पाकर और उसके विवाह का हाल सुनकर रुक्मिणी को भी अत्यन्त आनन्द हुआ। प्रद्युम्नकुमार इस प्रकार अपनी प्रतिज्ञा पूर्णकर, अपनी नव विवाहिता पत्नी के साथ आनन्दपूर्वक अपने दिन व्यतीत करने लगे।
.. जिस समय प्रद्युम्न और वैदर्भी का विवाह हुआ, उसी समय शाम्ब ने • सुहारिणी नामक एक सुन्दर रमणी का पाणिग्रहण, किया, सुहारिणी हेमाङ्गद
राजा की पुत्री थी और एक वेश्या के उदर से उत्पन्न हुई थी, किन्तु वह इतनी सुन्दर थी कि अप्सराएं भी उसका रूप देखकर लज्जित हो जाती थी। शाम्ब के दिन भी आनन्द में कटने लगे। - शाम्ब स्वभाव से बहुत ही विनोदप्रिय और कुतूहली था। कुछ कुछ उत्पाती भी था। इसी कारण से वह कभी कभी सत्यभामा के पुत्र भीरु को मार बैठता था और कभी जूए में उसका धन भी जीत लिया करता था। एक दिन द्यूत के सम्बन्ध में भीरू के तोते ने कहा
सकृजल्पन्ति राजानः, सकृजल्पन्ति पण्डिताः। ... सकृत्कन्या, प्रदीयन्ते, त्रिण्येतानि सकृत्सकृत्॥ अर्थात्-“राजगण एक ही बार बोलते हैं, पण्डितगण एक ही बार