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श्री नेमिनाथ-चरित * 301 भी अपने मुख से कहना तुम्हारे लिये उचित न होगा। हां, यदि इसके कारण तुम पर कोई विपत्ति आये, तो मुझ पर विश्वास रखना, मैं उस विपत्ति से तुम्हारी रक्षा अवश्य करूंगा।"
इतना कह प्रद्युम्नकुमार वहां से चले आये और वैदर्भी रात्रिजागरण तथा रति श्रम से शान्त होकर वहीं सो गयी। सुबह सुर्योदय हो जाने पर भी जब उसकी निद्रा भंग न हुई, तब उसकी धात्री ने आकर उसे जगाया। जगाते समय अचानक उसकी दृष्टि उसके हाथ में बंधे हुए कंकण पर जा पड़ी। उसे देखते ही वह मानो चौंक पड़ी। उसने वैदर्भी से उसके सम्बन्ध में अनेक प्रश्न किये, किन्तु प्रद्युम्न के आदेशानुसार उसने उसके प्रश्नों का कुछ भी उत्तर न दिया। ____ इससे धात्री बहुत भयभीत हूई। उसने अपनी निर्दोषता प्रमाणित करने के लिए उसी समय यह हाल राजा और रानी से कह सुनाया। उन दोनों ने भी उसी समय उसके पास आकर उससे अनेक प्रकार के प्रश्न किये, किन्तु उसने एक का भी उत्तर न दिया। राजा और रानी इससे बड़ी चिन्ता में पड़ गये। वैदर्भी के शरीर पर विवाह और पति समागम के अनेक चिन्ह स्पष्ट रूप से दिखायी दे रहे थे, किन्तु वह इस विषय में कुछ भी न बतलाती थी।
. अन्त में रुक्मि राजा को वैदर्भी पर क्रोध आ गया। वह अपने मन में कहने लगा—“यह कन्या दुराचारिणी और कुलटा है। मालूम होता है कि • अविवाहिता अवस्था में ही गुप्त रूप से किसी पुरुष के साथ क्रीड़ा करती है। ऐसी कन्या का तो मुख देखना भी महापाप है। उस दिन उन चाण्डालों ने इसकी याचना की थी। यदि मैंने इसे उन्हीं को दे दिया होता, तो आज मुझे 'यह मन:कष्ट न होता। खैर, मैं समझता हूं कि वे दोनों अभी भी नगर के बाहर कहीं न कहीं मौजुद होंगे। यदि वे मिल जायें, तो इसको उन्हीं के सुपर्द कर देना चाहिए। इस पापिनी के लिए यही उपयुक्त दण्ड होगा-यही इसके पाप का प्रायश्चित होगा।"
इस प्रकार विचार कर रुक्मि ने उन चाण्डालों को खोज लाने के लिए चारों ओर अपने आदमी रवाना कर दिये। वे अभी तक नगर के बाहर ही थे, इसलिए उनको लाने में उन्हें कुछ भी विलम्ब न हुआ। उनको देखते ही रुक्मि ने कहा- “तुमने मेरी कन्या की याचना की थी, इसलिए मैं तुम्हें सहर्ष उसे