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श्री नेमिनाथ-चरित * 299 गायन समाप्त होने पर उसने उन दोनों को काफी ईनाम देकर पूछा“तुम लोग यहां किस स्थान से आ रहे हो?"
माया चाण्डालों ने कहा-“राजन् ! हम लोग स्वर्ग से द्वारिका नगरी देखने आये थे और इस समय वहीं से आ रहे हैं।"
इधर अपने पिता के पास ही राजकुमारी वैदर्भी बैठी हुई थी। उसने उत्सुकता पूर्वक उनसे पूछा- “क्या तुम लोग कृष्ण रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न को भी जानते हो?"
शाम्ब ही ने कहा-“कामदेव के समान उस महारूपवान् और बलवान् प्रद्युम्न को कौन नहीं जानता? उसको देखते ही दर्शक के नेत्र शीतल हो जाते
- प्रद्युम्न की यह प्रशंसा सुनकर वैदर्भी रागयुक्त और उत्कंठित बन गयी। इतने ही में एक मदोन्मत्त हाथी अपने बन्धन तुड़ाकर गजशाला से भाग आया
और नगर में चारों और उत्पात मचाने लगा। किसी को वह पैरों से कुचल डालता, किसी को सूंढ से पकड़कर आकाश में फेंक देता और किसी को इतनी तेजी से खदेड़ता, कि उसे भाग कर प्राण बचाना भी कठिन हो जाता। राजा रुक्मि के यहां जितने महावत थे, वे सभी उसे वश करने में विफल हो
'. गये।
". अन्त में, जब उसके उत्पात के कारण चारों ओर हाहाकार मच गया, तब राजा रुक्मि ने घोषणा की कि-"जो इस हाथी को वशकर लेगा, उसे . मुंह मांगा ईनाम दिया जायगा।" रुक्मि की यह घोषणा सुनकर शाम्ब और प्रद्युम्न इसके लिये कटिबद्ध हुए और उन्होंने मधुर संगीत द्वारा उस हाथी को स्तम्भित कर दिया। इसके बाद वे दोनों उसी पर सवार हो, उस गजशाला में
ले गये और वहां उन्होंने उसे मजबूत जंजीरों से जकड़ दिया। .. शाम्ब और प्रद्युम्न के इस पराक्रम की बात सुनकर रुक्मि ने प्रसन्नतापूर्वक उन दोनों को अपने पास बुलाया और उनके कार्य की प्रशंसा कर कहा"तुम लोग अपने इस कार्य के बदले मुझसे इच्छित वस्तु मांग सकते हो!"
चाण्डाल वेश धारी शाम्ब और प्रद्युम्न ने कहा- “हमारे पास कोई